जानकारियाँ


इकोफ्रेंडली प्लास्टिक बैग्स ही बनेंगे अब
 प्लास्टिक बैग्स से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में आप अक्सर पढ़ते होंगे। अब केंद्र सरकार के पास एक प्रस्ताव भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि देश में बायोडिग्रेडेबल बैग्स का प्रडक्शन जरूरी बना दिया जाए। ये बैग्स आसानी से सड़-गल कर प्रकृति में खप जाते हैं।

पर्यावरण के अनुकूल इन बैग्स को जरूरी बनाने का जो प्रस्ताव केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पर्यावरण मंत्रालय को भेजा है, उसमें कहा गया है कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के मानकों के हिसाब से ये बैग्स बनाए जाने चाहिए। बीआईएस ने पिछले साल उत्पादकों के लिए बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक फिल्म का नोटिफिकेशन जारी किया था।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि बीआईएस के मानकों का पालन जरूरी न होने से उत्पादक इन्हें नहीं अपनाते। सो यह जरूरी है कि पर्यावरण मंत्रालय नोटिफिकेशन जारी कर साधारण प्लास्टिक बैग्स पर पाबंदी लगाए। प्रस्ताव के मसौदे पर पर्यावरण मंत्रालय के साथ मई में विस्तार से बात हुई थी। हमें उम्मीद है कि जल्द मंजूरी मिल जाएगी।

दिल्ली हाई कोर्ट ने भी एक आदेश में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग्स को बढ़ावा दिए जाने की सलाह दी थी। साथ ही राज्य सरकार से कहा था कि शॉपिंग मॉल्स, सार्वजनिक स्थानों, होटलों और अस्पतालों में साधारण प्लास्टिक बैग्स पर पाबंदी लगाई जाए।

क्या है बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक
सामान्य (सिंथेटिक) प्लास्टिक कच्चे तेल से निकाला जाता है। यह पेट्रॉलियम प्रडक्ट है। इसके मॉलिक्यूल काफी लंबे और मजबूत होते हैं, जिन्हें माइक्रो ऑर्गनिज्म हजम नहीं कर पाते। ऐसे में यह प्लास्टिक खत्म नहीं होता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहता है। इसके उलट बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक ऐसे तत्वों से बनाया जाता है जिन्हें माइक्रो ऑर्गनिज्म आसानी से हजम करके कुदरत में खपा देते हैं।

कैसे बनता है यह प्लास्टिक
दो तरीके हैं- या तो सिंथेटिक प्लास्टिक में ऐसे तत्व मिला दिए जाएं कि माइक्रो ऑर्गनिज्म उसे हजम कर सकें, या फिर यह कि पेट्रॉलियम के अलावा डिग्रेडेबल या जैविक चीजों से प्लास्टिक बनाया जाए। दूसरे तरीके से यह प्लास्टिक काफी बनने लगा है। इसमें स्टार्च जैसी चीजों का इस्तेमाल होता है, जो आलू, मक्का और चावल से हासिल होती हैं।

क्या हैं दिक्कतें
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक से काफी महंगा है। जाहिर है लोग इसे खरीदने से बचेंगे, लेकिन जानकारों का कहना है कि अगर पर्यावरण को नुकसान और निपटान की लागत जोड़ी जाए तो सिंथेटिक प्लास्टिक इससे महंगा ही पड़ेगा। दूसरी बात यह कि जब इस प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर प्रॉडक्शन होगा तो लागत घट जाएगी। एक आशंका यह भी है कि इस तरह से प्लास्टिक बनाने पर अनाज की कमी पड़ सकती है।

एक लाख बच्चों से जुड़ेगा एनसीईआरटी
एक लाख बच्चों तक सीधे पहुंचने के लिए एनसीईआरटी ने नई मुहिम शुरू की है। इसके लिए एनसीईआरटी ने एक हजार स्कूलों से संपर्क किया है। इन स्कूलों को एनसीईआरटी डीवीडी प्रदान करेगा। यह डीवीडी मुख्यत: पर्यावरण और पानी के मुद्दों को लेकर होगी। स्कूलों को ये डीवीडी मुफ्त में प्रदान की जाएगी।

एनसीईआरटी स्कूलों को डीवीडी के साथ एक फीडबैक फॉर्म भी प्रदान करेगा। फीडबैक फॉर्म में बच्चों को ये बताना होगा कि इनसे उन्होंने क्या सीखा। अपने निजी जीवन में वह उनका इस्तेमाल कितना करते हैं।

एनसीईआरटी के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी (सीआईईटी) की संयुक्त निदेशक वसुधा कामथ ने बताया कि हमारी ये मुहिम बच्चों से सीधे जोड़ेगी तथा इसके द्वारा उनसे सहज तरीके से कम्युनिकेशन संभव होगा।

स्कूलों को डीवीडी प्रदान की जाएगी। बच्चों से फीडबैक लिया जाएगा। साथ ही उन्हें पुरस्कार भी दिए जाएंगे। वसुधा ने बताया कि एनसीईआरटी एक डाटा सेंटर बनाने जा रहा है जो कि दो से तीन माह में बनकर तैयार हो जाएगा।

(हिंदुस्तान,दिल्ली,7.3.11)

एक समाचार : सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायरमेंट यानि CSE ने एक बड़ा खुलासा किया है।
सीएसई की एक रिपोर्ट की मानें तो चिप्स, कोल्ड्रिंक, नूडल्स और बर्गर जैसे खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियां इनमें शामिल ट्रांस फ़ैट, शूगर और साल्ट की मात्रा के बारे में झूठ बोलती हैं।

एक इंसान को रोज़ाना 5 ग्राम नमक की ज़रूरत है। मैगी नूडल्स के 100 ग्राम के पैक में 3.5 ग्राम नमक होता है, यानी आपकी दिन भर की ज़रूरत का 60 फ़ीसदी।

नमक से भी बड़ा ख़तरा है ट्रांस फ़ैट, यानी बैड फैट। इस फैट का इस्तेमाल समान को डीप फ्रीज़ में रखने के लिए किया जाता हैं , जिस से वे ज्यादा देर तक सही रहे...इसलिए यह सभी फ्रोज़न फ़ूड में होता है...यह फैट धमनियों में जम जाता है और रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध करता है । WHO के मुताबिक एक पुरुष दिन भर में 2.6 ग्राम ट्रांस फ़ैट ले सकता है, जबकि महिलाएं 2.1 ट्रांस फ़ैट ले सकती हैं। लेकिन मैकडॉनल्ड का एक बर्गर एक बार में दिन भर की ज़रूरत का 90 फ़ीसदी ट्रांस फ़ैट आपके शरीर में पहुंचा देता है।

इसी तरह कोल्ड ड्रिंक में सुगर की मात्र बहुत ज्यादा होती हैं..जो मधुमेह की बिमारी को न्योता देती हैं |

इस तरह से जंक फ़ूड की थोड़ी सी मात्रा ही..पूरी दिन की जरूरत को पूरा कर देती हैं , इसलिए जो बाकि खाना खाया जाता हैं वो सब extra होता हैं | यह सब उक्त रक्तचाप, डाईबिटीज़ बीमारी को आमंत्रित करती हैं और हमारे किडनी , लीवर और ह्रदय को नुकसान पहुचाती हैं |

पहले सोचा जाता था की...यह सब सिर्फ शहरो की बीमारी हैं...पर अब इन्होने गाँवों ,कस्बो को भी अपनी चपेट में ले लिया हैं ...

कारण सीधा सा हैं...की..बड़े सितारे दिन भर इनके विज्ञापन करते हैं और वो सब बच्चो को मुख्य निशाना बनाते हैं....और बच्चो के लिए हम कुछ भी करते हैं...

बात सीधी सी ये हैं की...अब हम सबका कुर्बानी का समय आ गया है...क्योकि वो चीज हमको छोडनी पड़ेगी...जो हमें अच्छी लगती हैं..स्वाद अच्छा हैं...तुरंत उपलब्ध हैं .....पेट भर जाता हैं ...एक बात और ..बच्चो को अच्छे काम करने पर...दिए जाने वाले तोहफों के लिए कोई नए बहाने ढूंढने होंगे...क्योकि इस तरह की चीज देना ...अब खतरनाक होगा.मतलब की...बच्चो की उपलब्धियों को..इन गलत चीजों से जोड़ना छोडना होगा.....अगर हम...सोचते हैं की हम इस विषय और अपने और अपने परिवार की सेहत के प्रति गंभीर हैं....

 भीष्म  उवाच .....

एक स्थल पर मृत्युशय्या पर आसीन भीष्म जलाशयों के निर्माण एवं वृक्षरोपण की आवश्यकता स्पष्ट करते हैं । ये बातें महाकाव्य के अनुशासन पर्व के अठावनवें अध्याय में वर्णित हैं । ३३ श्लोकों के उक्त अध्याय में बहुत-सी बातें कही गई हैं । मैं अध्याय के अंतिम ८ श्लोकों को इस ब्लॉग में उद्धृत कर रहा हूं:
अतीतानागते चोभे पितृवंशं च भारत ।
तारयेद् वृक्षरोपी च तस्मात् वृक्षांश्च रोपयेत् ॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय ५८, श्लोक २६)
(भारत! वृक्ष-रोपी अतीत-अनागते च उभे पितृ-वंशं च तारयेद्, तस्मात् च वृक्षान् च रोपयेत् ।)
अर्थ - हे युधिष्ठिर! वृक्षों का रोपण करने वाला मनुष्य अतीत में जन्मे पूर्वजों, भविष्य में जन्मने वाली संतानों एवं अपने पितृवंश का तारण करता है । इसलिए उसे चाहिए कि पेड़-पौंधे लगाये ।
तस्य पुत्रा भवन्त्येते पादपा नात्र संशयः ।
परलोगतः स्वर्गं लोकांश्चाप्नोति सोऽव्ययान् ॥
(पूर्वोक्त, श्लोक २७)
(एते पादपाः तस्य पुत्राः भवन्ति अत्र संशयः न; परलोक-गतः सः स्वर्गं अव्ययान् लोकान् च आप्नोति ।)
अर्थ - मनुष्य द्वारा लगाए गये वृक्ष वास्तव में उसके पुत्र होते हैं इस बात में कोई शंका नहीं है । जब उस व्यक्ति का देहावसान होता है तो उसे स्वर्ग एवं अन्य अक्षय लोक प्राप्त होते हैं ।