सोमवार, 10 जनवरी 2011

सोख्ता गडढा काम कर रहा है Soakage pit follow up

सोख्ता गडढा काम कर रहा है    Soakage pit  follow up


क्लब सदस्यों द्वारा हर रोज यह जांचा जाता है की क्या उन के द्वारा बनाया गया सोख्ता गडढा काम कर रहा है या नहीं
बनाने  के ठीक 5 दिन के बाद यह लगातार वेस्ट जल को सोख रहा है एक भी बूंद पानी नहीं बेकार गया है और ना ही एक ही कीचड बन के जमा हुआ है यह सोख्ता गडढा  लगातार प्रतिदिन लगभग 200 लीटर बेकार पानी को 5-6 सालों तक सोख्ता रहेगा और जब यह चोक हो जाएगा तब इस् की मुरम्मत कर दी जाएगी इस  काम के लिए गड्ढे से सारा मटीरियल बाहर निकाल कर पानी से धो कर धुप में सुखा कर फिर से भर देंगे | 
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

बुधवार, 5 जनवरी 2011

सोख्ता गडढा बनाया गया Soakage pit for proper disposal of waste water

                     सोख्ता गडढा  बनाया गया
                          Soakage pit for proper disposal of waste water
                               (जनवरी 2011 की क्लब गतिविधि)     
हैंडपम्प,पानी पीने की जगह पर शुद्ध जल की एक बड़ी मात्रा बेकार जाती है जो की नाली में बह  जाती है या फिर वहीँ आस पास एकत्र हो कर कीचड बनाती है इन स्रोतों के पास जल एकत्र होता रहता है जो मच्छरों को खुला निमंत्रण देता है जिस कारण बीमारियाँ फैलती है
क्लब सदस्यों ने विद्यालय में ये ही समस्या देखी और फैसला लिया के जल पीने के स्थान पर एक सोख्ता गड्ढा बनाया जाएगा |
आओ जाने सोख्ता गड्ढा  क्या होता है ?
1mx1mx1m का एक गड्ढा जो की बेकार हुए शुद्ध जल को पुनः भूमि के भीतर पहुंचाने का कार्य करता है
इस को घरों में भी बनाया जा सकता है|
यह सोख्ता गड्ढा हैण्डपम्पो के पास बनाया जाए तो बहुत लाभ होता है |
बनाने की विधि:-निम्न बिंदुओं के अनुरूप कार्य कर के हम इसको बना सकते है|
1.सोख्ता गडढा वहीँ बनायें जहाँ पानी वेस्ट होता हो |
soakage_pit-1 soakage_pit-2
2. सोख्ता गडढा  की लम्बाई,चोड़ाई और गहराई =1मीx1मीx1मी  
3.इस् गड्ढे के बीचो बीच 6इंच व्यास  का 15 फीट का बोर करें(उपर के दो चित्र)
soakage_pit-3 IMG_3592 soakage_pit-5
4.अब इस् बोर में पिल्ली ईंटों (नरम ईंटों) की रोड़ी भरें|
5.अब नीचे 1/4 भाग में 5इंचx6इंच साईज़ के ईंटों के टुकड़े,फिर1/4 भाग में 4इंचx5इंच साईज़ के ईंटों के टुकड़े भर देते है| (उपर के तीन चित्र)
soakage_pit-6 soakage_pit-7
6.शेष 1/4 भाग में बजरी (2इंचx2इंच साईज़) भर देते है|
7.अब 6 इंच की एक परत मोटे रेत की बना देते है|(उपर के दो चित्र)
8.एक मिट्टी का घड़ा या पलास्टिक का डिब्बा लेकर उस में सुराख कर देते है फिट उस में नारियल की जटाएं या सुतली जूट भर देते है यह इसलिए कि पानी के साथ आने वाला ठोस गंद उपर ही रह जाएगा और कभी कभी सफाई करने के लिए भी सुविधा हो जाएगी
soakage_pit-8 soakage_pit-9
9.अब निकास नाली को इस घड़े या डिब्बे के साथ जोड़ देते है वेस्ट पानी इस में सबसे पहले आएगा|   
10.खाली बोरी से गड्ढे को ढक देते है|
11.बोरी के उपर मिट्टी डाल कर गड्ढे को ईंटों से बंद कर देते है|
12.अब तैयार हो गया सोख्ता गड्ढा(उपर के तीन चित्र)
soakage_pit-13     soakage_pit-12
अब यह गड्ढा प्रतिदिन लगभग 200 लीटर बेकार पानी को 5-6 सालों तक सोख्ता रहेगा|कक्षा दशम के छात्र दिलबाग सिंह ,योगेश ,अक्षय ,गुरदीप व साथीयों ने बनाया |
soakage_pit-14   नोट : गड्ढे की गहराई एक मीटर से कम ना हो क्यूँकी 0.9 मीटर तक जमीन में एरोबिक जीवाणु aerobic bacteria होते है ये जीवाणु वेस्ट पानी के कार्बनिक पदार्थों का विघटन करते है और पानी को स्वच्छ करते है |
गड्ढे की लम्बाई चोड़ाई बडाई जा सकती है पर गहरी 1मी. से अधिक ना हो क्यूँकी एरोबिक जीवाणु 0.9 मी.से नीचे वायु के आभाव में जीवित नहीं रहते और तब जीवाणु द्वारा होने वाली प्रक्रिया नहीं हो पाती और गन्दा जल ही जमीन में चला जाएगा|
 

प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

सोमवार, 3 जनवरी 2011

ईको क्लब्स का राज्यस्तरीय कैम्प State Level Camp Of Eco Clubs

                         इको  क्लब्स का राज्यस्तरीय कैम्प
                          State Level Camp Of Eco Clubs
                                         (18-19 दिसंबर 2010)
इस  बार NGC (National Green Corps) का राज्य स्तरीय कैम्प यमुनानगर में लगा |
यमुनानगर के टैगोर पब्लिक स्कूल में यह कैम्प शुरू हुआ जिस के अंतर्गत कईं कार्यक्रम संचालित किये गए |
कार्यक्रम का उदघाटन जिला उपायुक्त श्री अशोक सांगवान ने किया |
उन्होंने बच्चों को बताया की पर्यावरण की रक्षा करना सबका मुख्य कार्य होना चाहिये  हम अपने दैनिक जीवन में कुछ नियम बना कर भी यह कार्य सुचारू रूप से कर सकते है | 
इस उदघाटन समारोह को डा. शुभ किरण शर्मा ,वैज्ञानिक ,पर्यावरण विभाग जी ने भी संबोधित किया ,डा. आर.के.चौहान जी ने भी अपना लेक्चर डिलीवर किया |   विभाग के ही अजेश जी ,जगदीश जी का सहयोग सराहनीय था |

Eco Clubs urged to spread green awareness

Chandigarh, Dec 21 : Members of Eco Clubs set up in Haryana have been urged to play a vital role in creating awareness about clean environment and plant more trees.
Stating this here today, a spokesman for theenvironment department  Haryana said a two-day camp of eco clubs concluded successfully at Yamuna Nagar with a resolve by the participants to keep environment clean and motivate others to join the drive.
Yamuna Nagar Deputy Commissioner Ashok Sangwan, who inaugurated the camp, lauded the efforts being made by the Environment Department to create awareness among the children. He stressed the need for complete ban on use of polythene and stressed afforestation to keep the environment clean.
Dr Shubh Kiran Sharma, Scientist, Environment Department, said there were 500 Eco clubs established throughout the state to create awareness with regards to environment.
The clubs were working in schools and children were being educated about the importance of environment.
--UNI 
कार्यक्रम  के तहत राज्य भर से आये इको क्लब सदस्यों व अध्यापक इंचार्ज व जिला मास्टर ट्रेनर्स को स्थानीय श्री गोपाल बळलारपुर लिमिटिड पेपर मिल दिखाई गयी वहां के एंजीनियर साहेबान ने सब को पेपर मिल की कार्यप्रणाली को विस्तार से दिखाया व समझाया 
  इसके  बाद सभी इको क्लब सदस्य वापस आ गए और स्थानीय बाजारों का भ्रमण किया
 सब इको क्लब सदस्यों को अब ले जाया गया ताऊ देवी लाल हर्बल गार्डन दिखाने के लिए यहाँ से 40 किलोमीटर दूर शिवालिक पर्वतों के तराई इलाके में 


यहाँ सब ने सैकड़ों जड़ीबूटी के पौधे देखे और डा. ऐ.पी.जे.अब्दुल कलाम जी के हाथों से लगाया गया रुद्राक्ष का पौधा भी देखा जो अब एक बड़ा पेड़ बन चुका है इसके  बाद सभी इको क्लब सदस्यों को यहाँ से 14 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश हरियाणा के बार्डर पर स्थित  कालेश्वर महादेव मठ में ले जाया गया जहां मठ में क्लब सदस्यों ने पेंटिंग प्रतियोगिता और क्विज प्रतियोगिता में भाग किया यहाँ पर बच्चों को रिफ्रेशमेंट भी दी गयी |
यहाँ बच्चों ने यहाँ की प्रसिद्ध लोहे की गदा को वैज्ञानिक तरीके से उठा कर देखा  और अभ्यास किया|   
कालेश्वर मठ में एक मशहूर त्रिवेणी पेड़ लगा है|



और अब सभी क्लब सदस्यों को कलेसर नेशनल पार्क ले जाया गया यह बच्चों के लिए अविस्मरणीय पल थे
हालंकि बच्चे कोई जीव जंतु तो नहीं देख सके परन्तु फिर भी असीम जैव विविधता वनस्पतियां देखने लायक थी 
कलेसर नेशनल पार्क में हाथी ,बाघ ,तेंदुआ ,नील गायें ,साम्भर ,हिरन ,जंगली सूअर ,विभिन्न पक्षी ,रोझ-माहे आदि जीव जंतु पाए जाते है | 



कलेसर नेशनल पार्क देखने के बाद अब बारी थी हथनी कुंड बैराज देखने की ,यह बैराज यमुना नदी पर बनाया गया है यहाँ पर यमुना के पानी को रेगुलेट किया जाता है दिल्ली के लोग इस  बैराज (बाँध) से भली भांति परिचित है जब भी मानसून में दिल्ली यमुना में बाड़  की स्तिथि बनती है तब इसी बाँध से पानी छोड़ा  जाता है इस  वर्ष यमुना ने यमुनानगर जिले में भारी तबाही मचाई उस बाद के अवशेष चिन्ह भी सब ने देखे | 
यमुना नगर जिले में बाड़ आने का एक कारण बजरी रेत का अवैध खनन भी बताया जाता है यहाँ 80-90 फीट तक खुदाई की जा चुकी है|
बच्चों ने इस बारे भी जाना कि अब आजकल अवैध खनन व स्टोन क्रेशर बंद है पर साथ लगती यू. पी. में अवैध खनन व स्टोन क्रेशर चालु है रोजाना हज़ारों ट्रक-ट्राले,डम्पर,ट्रैक्टरट्राली यू. पी. से माल ले कर यमुना नगर शहर से गुजर कर हरियाणा के अन्य जिलों व दिल्ली जाते है जिस कारण पिछले कईं सालो से यमुना नगर में काफी प्रदूषण हो गया है|  
और अब अंत में सब वापिस आ गए यमुनानगर क्लोजिंग सेरामनी के लिए 
सब विजेता बच्चों को पुरस्कार दिए गए 
और सांस्कृतिक कार्यक्रम देखे
  इस प्रकार यह दो दिवसीय इको क्लब्स का राज्यस्तरीय  कैम्प सम्पन्न हुआ |      
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
         

प्रदूषण मुक्त दीपावली Pollution Free Diwali

                             प्रदूषण मुक्त दीपावली
                             Pollution Free Diwali
                                                 (30-10-2010)
आज  इको क्लब के सदस्यों ने प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाये जाने बारे एक मुहीम चलाते हुए विद्यालय के सभी बच्चों को पटाके ना चलाने बारे प्रेरित किया |
इस  अवसर पर एक नारा लेखन प्रतियोगीता का भी आयोजन किया गया जिस में दो नारे सर्वश्रेष्ट चुने गए 
1. फल मिठाईयां खाएंगे -पटाखे नहीं चलाएंगे 
2. पटाखों की चिंगारी -जीवन की दुश्वारी
क्लब सदस्यों की टीम जिन्होंने अन्य को प्रेरित करने का बीड़ा उठाया और आपना काम बखूबी किया 
इनकी मेहनत के परिणाम सुखद मिलेंगे |

 इस अवसर पर बच्चों को यह भी बताया गया,
क्या आप मजे के लिए अपने बच्चे को सिगरट/बीडी पीने देते हैं? अगर नहीं तो फिर उस से हज़ारो गुना ज्यादा नुक्सान दायक पटाखे क्यूँ ?
क्या आप जानते हैं दिवाली के बाद लगभग एक महीने तक हम लोग दूषित हवा में सांस लेते हैं | पटाखों से निकले जहरीले बारूद एवं मिटटी के कण कई दिनों तक सांस के साथ जाकर हमारे फेफड़ो में जम जाते हैं और जहरीला धुंआ महीनो तक आपको अनदेखा नुक्सान करता है | आइये अपने त्योहारों को फिर से पर्यावरण के लिए अनुकूल बनाये |
दिवाली की खुशियाँ मनाने के लिए पटाखे चलाना जरुरी है?पटाखों से बहुत सारे समस्या पैदा होती है जैसे की वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और पटाखों से जलने की दुर्घटना. इतनी सारी समस्याएँ हैं फिर भी क्यूँ चलते हैं हम ये पटाखे. दिवाली के दिन सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है. दिवाली दीयों का त्यौहार हैं तो हम सिर्फ दीयों से भी मना सकते हैं ये पर्व. आओ हम इस दिवाली पटाखे न चलाने का संकल्प लें. और साफसुथरी दिवाली में भागीदारी बनायें. अपने बच्चो को समझाए "दिवाली रौशनी का त्यौहार है ना कि धुंए और बम धमाको का"
बुजुर्ग दीपावली की रात आराम से सो नहीं पाते। दमे के मरीजों के लिए तो यह रात कहर की रात की तरह होती है क्योंकि पटाखों से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा सामान्य से दस गुणा तक बढ़ जाती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक पटाखों से वातावरण में शीशा और सल्फर की मात्रा बढ़ जाती है। इसी तरह से आवाज का प्रतिशत भी तेजी से बढ़ जाता है। सबसे अधिक दिक्कत तो तेज आवाज वाले पटाखे से होती है क्योंकि आवाज पैदा करने के लिए पटाखों में खतरनाक रसायन के साथ ही सल्फर और पोटाश भर दिया जाता है जिसके कण आवाज के साथ वायुमंडल में फैल जाते हैं। बुजुर्ग व बच्चे इसे सहन नहीं कर पाते। सांस के रोगियों के लिए भी यह स्थिति काफी कष्टकारी होती है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम १९८६ के अनुसार एक लाख रुपए तक जुर्माना व पांच साल की कैद दोनों हो सकती हैं। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पटाखे का प्रयोग शाम छह से रात दस बजे तक ही किया जाना चाहिए। अस्पताल व शिक्षण संस्थान न्यायालय धार्मिक स्थल के चारों ओर कम से कम सौ मीटर की दूरी तक पटाखे का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पङ्क्षरदों के लिए भी नुकसानदायक : बम व पटाखे का सबसे अधिक नुकसान परिंदों पर होता है क्योंकि इससे वे रात भर सो नहीं पाते। तेज आवाज की उन्हें आदत नहीं होती। पटाखा फूटते ही वे जान बचाने के लिए उडऩा शुरू कर देते हैं। इस कोशिश में परिंदे तार या झाडिय़ों से टकरा कर मर जाते हैं। हमें दीपावली की रात कम से कम पटाखे चलाने चाहिएं। इसके बिना भी दीपावली का त्योहार मनाया जा सकता है।
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

विश्व जीव जंतु दिवस World Animal Day 4-october-2010

                                       विश्व जीव जंतु दिवस 
                                       World Animal Day
                                          4-october-2010
विश्व जिव जंतु दिवस के उपलक्ष पर इको क्लब सदस्यों को विलुप्त हो चुके और विलुप्ती के कगार पर खड़े जीवों के बारे में बताया गया
करोड़ो वर्षो की अवधि में अनेक जीव समुदाय अस्तित्व में आए और उनमें से कई इस भूलोक से विदा भी हो गए। प्रथम जीव की उत्पत्ति से वर्तमान काल तक लाखों प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का विकास हुआ, लेकिन आज उनके कुछ चुनिंदा प्रतिनिधि ही शेष बचे हैं। भूगर्भीय अन्वेषण से स्पष्ट होता है कि अधिकाश प्रारंभिक व मध्यकालिक पादप और जंतु समूह कुछ लाख साल तक धरती पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर विलुप्त हो गए। लगभग 23 करोड़ वर्ष पूर्व कुछ ऐसी प्राकृतिक घटनाएं घटित हुई, जिनके कारण अधिकाश जैव प्रजातिया एक साथ विलुप्त हो गई। इसी काल में दैत्याकार डायनासोर के साम्राज्य का भी अंत हुआ। करोड़ों वर्ष पहले विलुप्त हुए उन जीवों की उपस्थिति के प्रमाण के रूप में अब हमारे समक्ष उनके जीवाश्म ही शेष हैं।
जीव शास्त्रियों का मत है कि पृथ्वी पर आज तक जितने भी जीव विकसित हुए, उनका मात्र एक प्रतिशत ही आज अस्तित्व में हैं। शेष 99 प्रतिशत जीव अब पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं। जीवों का विलुप्तिकरण सहज प्राकृतिक घटना है, जिससे बच पाना मुश्किल है।
भारत भी ऐसे कई पौधों और जीव-जंतुओं का आवास क्षेत्र है, जो विश्व में कहीं और नहीं पाए जाते। उत्तर-पूर्व के वन क्षेत्र, पश्चिम घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत छोटे हैं, मगर यहा फूलधारी पौधों की 220 प्रजातिया और 120 प्रकार की फर्न पाई जाती हैं। यहा के समुद्र में फैली मूंगे [कोरल] की चट्टानें जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उत्तर-पूर्वी वन में 1500 स्थानिक पादप प्रजातिया पाई जाती हैं। पश्चिम घाट अनेक दुर्लभ उभयचरों, सरीसृपों व विशिष्ट पादप समूहों के लिए प्रसिद्ध है।
सन् 2050 तक लगभग एक करोड़ जैव प्रजातिया विलुप्त हो जाएंगी।
वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग 18 लाख वनस्पतियों और जंतुओं की प्रजातिया ज्ञात हैं। अनुमान है कि यह संख्या इससे दस गुना अधिक हो सकती है, क्योंकि अब भी कई जैव प्रजातियों की जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं है।
एक आकलन के अनुसार वर्तमान दर जारी रही तो प्रति वर्ष 10 से 20 हजार प्रजातियों के विनाश की आशंका है। यह प्राकृतिक विलुप्तिकरण की दर से कई हजार गुना ज्यादा है।
विकास के नाम पर पर्यावरण का भारी नुकसान होता है। शहरों का विस्तार, सड़क निर्माण या सिंचाई और ऊर्जा के लिए बाध निर्माण अथवा औद्योगिकीकरण, इन सब का खामियाजा तो मूक प्राणियों और वनस्पतियों को ही चुकाना पड़ता है। मानव की शिकारी प्रवृत्ति ने भी जीवों के विलुप्तीकरण की दर में वृद्धि की है।
वन्य प्राणियों की खाल, हड्डियां, दात, नाखून आदि के व्यापारिक महत्व के चलते इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। शिकार के ही परिणामस्वरूप मॉरिशस का स्थानीय पक्षी डोडो दुनिया से सदा के लिए कूच कर गया और अनेक जीव संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ खडे़ हुए हैं।
इनमें प्रमुख हैं बाघ, सिंह, गैंडा, भालू, हाथी, पाडा, चिंकारा, कृष्ण मृग, कस्तूरी मृग, बारहसिंगा, कई वानर प्रजातिया, घड़ियाल, गंगा में पाई जाने वाली डाल्फिन आदि। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों के उपयोग से कई पक्षी संकट में हैं। विगत कुछ वर्षो में चौपायों के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दर्द निवारक औषधि डिक्लोफेनेक के दुष्परिणाम प्रकृति के सफाईकर्मी गिद्धों पर इस हद तक हुए कि आज यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है।

प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

विश्व ओजोन दिवस पर गोष्टी World Ozone Day 16Sept-10

                                      विश्व ओजोन दिवस पर गोष्टी 
                                       World Ozone Day
                                                               (16-09-2010)
आज विद्यालय में विश्व ओजोन दिवस पर गोष्टी का आयोजन किया गया इस् अवसर पर क्लब सदस्यों व अन्य बच्चों को ओजोन गैस परत  के बारे में बताया गया |
छात्र  मंजुल द्वारा इस् विषय पर वक्तव्य इस  प्रकार से था
ओजोन पर्त
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है, जहां हमारा जीवन संभव है । वायुमंडल ठोस, द्रव्य व गैस के कणों से मिलकर बना है । हमारी पृथ्वी चारों ओर से वायुमंडलीय कवच से घिरी हुई है । यह कवच दिन में सूर्य की तेंज पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है, और रात में पृथ्वी को ठंडी होने से बचाता है । वायुमंडल में ७८ प्रतिशत नाइट्रोजन, १६ प्रतिशत आक्सीजन, ०.०३ प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड गैस है, इसके अतिरिक्त अन्य गैसों में नियान, हाइड्रोजन, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड भी अल्प मात्रा में पायी जाती है ।
वायुमंडल को मुख्य चार मंडलों में विभाजित किया गया है, जिन्हें क्षोभ मंडल, समताप मंडल, मध्य मंडल व ताप मंडल कहते है । क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे निचली पर्त है । इस मंडल में ऊचांई बढने के साथ तापमान कम हो जाता है । समता मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है । धुवों पर इसकी मोटाई अधिक होती है, जबकि विषुवत् रेखा पर इसका अस्तित्व कभी-कभार नही के बराबर होता है । मध्य मंड़ल में पहले तो तापमान बढ़ता है, परन्तु बाद में कम हो जाता है । तापमंडल में तापमान लगभग १७०० सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है, और इसकी कोई निश्चित सीमा नही होती है । समतापमंड़ल में ही ओजोन गैस से निर्मित एक पर्त पायी जाती है, जिसे ओजोन पर्त कहते है । ओजोन पर्त के इस मंडल में पाये जाने के कारण ही इसे ओजोन मंडल भी कहते है । यह ओजोन मंड़ल पृथ्वी से २०-२५ किमी पर सबसे अधिक है और लगभग ७५ किमी की ऊचांई से ज्यादा पर यह न के बराबर हो जाता है । ओजोन हल्के नीले रंग की सक्रिय वायुमंडलीय गैस है । यह समताप मंडल में प्राकृतिक रूप से बनती है । यह आक्सीजन का ही रूप है । एक ओजोन अणु में तीन आक्सीजन परमाणु होते है । इसका रासायनिक सूत्र ०३ है । वायुमंडल में ओजोन का प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में कम है । यह हवा में व्याप्त् दूसरे कार्बनिक पदार्थों से शीघ्रता से क्रिया करती है । इसकी खोज जर्मन वैज्ञानिक किस्चियन श्योन बाइन ने सन् १८३९ में की थी । जब सूर्य की घातक पराबैगनी किरणें वायुमंडल में आक्सीजन के साथ क्रिया करती हैं, तो प्रकाश विघटन के कारण ओजोन की उत्पत्ति होती है और यही ओजोन एक पर्त के रूप में सूर्य की तेज पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर सम्पूर्ण जीव-जगत की रक्षा करती है । प्राणवायु आक्सीजन अपने तीन आक्सीजन परमाणुओं से मिलकर ओजोन गैस का निर्माण करती हैं परन्तु हर्ष का विषय है कि यह ओजोन गैस समताप मंडल में एक रक्षक छतरी की भांति कार्य करती है । सम्पूर्ण जैव मंडल के लिये यह ओजोन छतरी रक्षा कवच कहलाती है । वे रसायन जो ओजोन परत को क्षति पहुंचाते है, उन्हें ओजोन क्षयक रसायन कहते हैं । इनमें क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (सी.एफ.सी), मिथइल ब्रोमाइड आदि प्रमुख है । इनकी खोज सन् १९२८ में हुई थी । क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स फ्लोरीन, क्लोरीन व कार्बन से मिलकर बनते है । सी.एफ.सी. का उपयोग फ्रीजव एअर कंडीशनर में प्रशीतलक के रूप में होता है ।
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

अक्षय उर्जा पर पेंटिंग प्रतियोगिता Painting Competition Akshya Urja

                           अक्षय उर्जा पर पेंटिंग प्रतियोगिता
                           Painting Competition Akshya Urja 
                                           (20-08-2010)
अक्षय उर्जा पर पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया इस  प्रतियोगिता में क्लब सदस्यों ने भाग लिया |
 क्या है अक्षय उर्जा (विकी लेख )
अक्षय उर्जा (अंग्रेजी:Renewable Energy) में वे सारी उर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं तथा जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता, या जिनके स्रोत का पुनः-भरण होता रहता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, ज्वार-भाटा से प्राप्त उर्जा, बायोमास, जैव इंधन आदि नवीनीकरणीय उर्जा के कुछ उदाहरण हैं।

अक्षय ऊर्जा का महत्व

ऊर्जा आधुनिक जीवन शैली का अविभाज्य अंग बन गयी है। ऊर्जा के बिना आधुनिक सभ्यता के अस्तित्व पर एक बहुत बडा प्रश्न-चिन्ह लग जायेगा।
  • अक्षय ऊर्जा, अक्षय विकास का प्रमुख स्तम्भ है।
  • अक्षय उर्जा , ऊर्जा का ऐसा विकल्प है जो असीम (limitless) है।
  • ऊर्जा का पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है। ऊर्जा के परम्परागत साधन (कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि) सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिये बहुत हानिकारक हैं। दूसरी तरफ ऊर्जा के ऐसे विकल्प हैं जो पूरणीय हैं तथा जो पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाते।
  • वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) तथा जलवायु परिवर्तन से बचाव
अक्षय ऊर्जा स्रोत वर्ष पर्यन्त अबाध रूप से भारी मात्रा में उपलब्ध होने के साथ साथ सुरक्षित, स्वत: स्फूर्त व भरोसेमंद हैं। साथ ही इनका समान वितरण भी संभव है। भारत में अपार मात्रा में जैवीय पदार्थ, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस व लघु पनबिजली उत्पादक स्रोत हैं। २१वीं शताब्दी का स्वरूप जीवाश्म ऊर्जा के बिना निर्धारित होने वाला है जबकि २०वीं शताब्दी में वह उसके द्वारा निर्धारित किया गया था। पूरे विश्व में, कार्बन रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास व उन पर शोध अब प्रयोगशाला की चाहरदीवारी से बाहर आकर औद्योगिक एवं व्यापारिक वास्तविकता बन चुके हैं।

भारत और अक्षय ऊर्जा

देश का अपारम्परिक ऊर्जा कार्यक्रम विश्व के इस प्रकार के विशालतम कार्यक्रमों में से एक है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रौद्योगिकी, बायोगैस, समुन्नत चूल्हे, बायोमास गैसीफायर, शीघ्र बढ़ने वाली वृक्ष-प्रजातियां, जैवीय पदार्थ का दहन एवं सह-उत्पादन, पवन-चक्कियों द्वारा जल निकासी, वायु टर्बाइनों द्वारा शक्ति का उत्पादन, सौर तापीय व फोटो वोल्टायिक प्रणालियाँ, नागरीय घरेलू तथा औद्योगिक अवजल व कचरे से ऊर्जा उत्पादन, हाइड्रोजन ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा, फुएल सेल, विद्युत चालित वाहन (बसें) व परिवहन के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर कार्य हो रहा है।
आने वाले कुछ हजार वर्षों में ही हमारे परम्परागत ऊर्जा स्रोत समाप्त हो जायेंगे। जिसे बनाने में प्रकृति ने लाखों वर्ष लगाएं है उसे हम कुछ ही मिनटों में समाप्त कर देते हैं। पर्यावरणीय प्रदूषण, सामाजिक एवं आर्थिक दबाव तथा राजनैतिक उठापटक समस्या को और गंभीर बनाते हैं। अतएव नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास व प्रयोग तथा इस हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति का होना आज की आवश्यकता है।
 
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
                                       

सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान Total Sanitation Campaign july-2010

                                 सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान
                                 Total Sanitation Campaign
                                      (14-20 JULY 2010)
सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान एक व्यापक कार्यक्रम है जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता को बढ़ावा दिया जता है।तथा खुले में शौच कराने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाता है।इसके माध्यम से हर ग्रामीण घर में शौचालय बनवाया जाता है।यह कार्यक्रम सूचना शिक्षा और संचार (आई।सी।टी।) और सामजिक विपणन के माध्यम से नयी पीढी के लिए स्वच्छता सुविधाओं की मांग उत्पन्न करता है।यह कार्यक्रम सामुदाय की सहभागिता एवं सहयोग से चलाया जाता है तथा इसका केन्द्रीय लक्ष्य हर आम आदमी को लाभ पहुंचाना है।इस योजना के तहत आंगनवाडी शौचालय और स्कूल शौचालय की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है,क्योंकि आंगनवाडी शौचालय और स्कूल शौचालय जितने स्वच्छ रहेंगे ,गाँव में स्वच्छता को उतना  ही ज्यादा बढ़ावा मिलेगा।इस योजना के अंतर्गत गांवों में लोगों की मांग के अनुसार शौचालयों का निर्माण कराया जाता है।
सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य रहन-सहन में सुधार लाना एवं स्वच्छता को व्यापक रूप से अपनाना है।आम लोगों को खुले में शौच करने की आदत से छुटकारा दिलाना एवं शौचालय का निर्माण कर उसका सही उपयोग करना है।सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान एक जन सहभागिता आधारित कार्यक्रम है, जिसमें जन समुदाय की भागीदारी हेतु जन जागृति लाया जाना है।प्रत्येक परिवार के घरों में वैयक्तिक शौचालय, प्रत्येक विद्यालय/आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालय एवं महिलाओं के लिए सामुदायिक शौचालय  हो|
 प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

रविवार, 2 जनवरी 2011

विश्व पर्यावरण दिवस-2010 World Evvironment Day-2010

                                     विश्व पर्यावरण दिवस-2010
                                World Evvironment Day-2010
                                             (5 june 2010)
           
5 जून को विद्यालय में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया क्लब सदस्य ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक इको मार्च यानी रैली निकाली गयी भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया| इस् अवसर पर क्लब सदस्यों एवं विद्यालय के अध्यापको ने प्रधानाचार्य के साथ एक यादगार ग्रुप फोटो बनवाया |
  इको मार्च पर जाते इमली इको क्लब के सदस्य
                                        

  इमली इको क्लब के सदस्य  अध्यापकगण एवं प्रधानाचार्य महोदय 
                         

इस बार बच्चों को रिफ्रेशमेंट के नाम पर कुछ खास ना दिया जा सका क्यूंकि इस् वर्ष NGC की कोई ग्रांट नहीं मिली अध्यापकों ने ही किया जो कुछ कर सकते थे सवेच्छा से, फिर भी सदस्यों का उत्साह कम नहीं था ग्रीष्मावकाश के बावजूद भी अध्यापक व सदस्य विद्यालय में दूर दूर से पहुंचे और पर्यावरण को अपना प्रेम प्रदर्शित किया | 
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा. वि. अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा                                    
द्वारा :-दर्शन बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 
 
 

अन्तराष्ट्रीय जैवविविधता दिवस International Biodiversity Day

                              अन्तराष्ट्रीय जैवविविधता दिवस 
                              International Biodiversity Day
                                         (22 may 2010) 
अन्तराष्ट्रीय जैवविविधता दिवस के अवसरपर नजदीक की वनस्पतियों का अध्ययन किया गया और उन के चित्र लिए गए |
 
प्रस्तुति:- ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

विश्व धरा दिवस World Earth Day

                     World Earth Day Celebration
                      विश्व  धरा दिवस मनाया गया
                               (22 APRIL 2010)
ईमली ईको क्लब के सदस्यों ने आज विश्व  धरा दिवस मनाया इस् अवसर पर रैली का आयोजन किया गया | इस् अवसर पर एक गोष्टी का भी आयोजन किया गया जिस में श्री सुनील व रविंदर जी ने सम्बोधित किया
                                                                        गोष्टी का आयोजन
                                                                     रैली का आयोजन 
प्रस्तुति:- ईमली इको क्लब रा.व.मा. वि. अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा                                     द्वारा--दर्शन बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

विश्व जल दिवस World Water Day

               विश्व जल दिवस
               World Water Day
                     Lecture on world water day
                        DATED:-22-03-2010
                            
            LECTURE DELIVERED BY Mr.Darshan Lal Science Master
    What is the importance of water in every day life ?
         इंसानी जीवन की बुनियादी जरूरतों में पानी
इंसानी जीवन की बुनियादी जरूरतों में पानी को शुमार करना गलत नहीं होगा। लोगों को अगर भोजन नहीं मिले तो वे कुछ दिन तक जिंदा रह सकते हैं लेकिन पानी के बगैर कुछ घंटे काटना भी बेहद मुश्किल होता है। भारत में आजादी के बाद से कई क्षेत्रों में जल संकट गहराता जा रहा है। देश के एक बड़े तबके को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, कई क्षेत्र वैसे भी हैं, जहां पीने के पानी की कोई दिक्कत नहीं है। इसके बावजूद बड़े-बड़े महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में पीने के पानी का संकट गहराता ही जा रहा है।
इस बात में तो किसी को कोई संदेह नहीं है कि जल प्रदूषण काफी तेजी से फैल रहा है। सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि शहरी घरों से जितना कचरा निकल रहा है उसके 80 फीसद से ज्यादा की निस्तारण की क्षमता भारत के पास नहीं है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक कचरे और भी चिंता बढ़ा रहे हैं। इसमें से ज्यादातर कचरा किसी किसी तरह से पानी में ही मिल रहा है और जल प्रदूषण काफी तेजी से फैल रहा है। कचरे का निस्तारण नहीं होने की वजह से जमीन के अंदर का पानी भी दूषित हो रहा है।
 आज विश्व जल दिवस है। जो संकट आने वाला है क्या वह थम जाएगा? यह सोचने का विषय है। सिर्फ सरकार ही नहीं आम आदमी को भी जागना होगा। सरकार की कोई भी योजना और नीति तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि आम आदमी उसमें शामिल हो। ऐसी ही योजना कुछ पानी को लेकर भी बनानी होगी। अन्यथा पहले की तरह नीतियां तो बनेंगी लेकिन सिर्फ कागजी। अब जरूरत है नीयत बनाने की। क्योंकि जब नियत बनेगी तभी नीतियां कारगर होंगी और इसके लिए आज जल दिवस से बढिय़ा अवसर नहीं होगा। सो चलिए नीयत बनाएं, जल बचाएं, कल बचाएं।
जल के संरक्षण हेतु कुछ नियमः
(1) बाग़ीचों की सींचाई सुबह अथवा संध्या में पतले पाईप से की जाए तो बहुत हद तक पानी की बचत की जा सकती है।
(2) गाड़ियों को पाईप से धोने की बजाए बाल्टी अथवा डोल से धोया जाए।
(3) ब्रष करते समय, चेहरा बनाते समय, बर्तन धुलते समय नल को खुला रखने से बचें। उसी प्रकार काम होने के बाद नल को अच्छी तरह बंद कर दें। यदि प्रयोग किए गए जल को किसी अन्य काम में लाना सम्भव हो तो ला लें।
(4) गिरने वाले थोड़े बुंद से जल का अधिक मात्रा नष्ट हो जाता है। यदि पूरे दिन पानी के बूंद गिरते रहें तो एक दिन में अनुमानतः 27 लीटर पानी नष्ट होता है।
                           प्रस्तुति:- ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा            
                           द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)