विश्व जीव जंतु दिवस
World Animal Day
4-october-2010
विश्व जिव जंतु दिवस के उपलक्ष पर इको क्लब सदस्यों को विलुप्त हो चुके और विलुप्ती के कगार पर खड़े जीवों के बारे में बताया गया करोड़ो वर्षो की अवधि में अनेक जीव समुदाय अस्तित्व में आए और उनमें से कई इस भूलोक से विदा भी हो गए। प्रथम जीव की उत्पत्ति से वर्तमान काल तक लाखों प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का विकास हुआ, लेकिन आज उनके कुछ चुनिंदा प्रतिनिधि ही शेष बचे हैं। भूगर्भीय अन्वेषण से स्पष्ट होता है कि अधिकाश प्रारंभिक व मध्यकालिक पादप और जंतु समूह कुछ लाख साल तक धरती पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर विलुप्त हो गए। लगभग 23 करोड़ वर्ष पूर्व कुछ ऐसी प्राकृतिक घटनाएं घटित हुई, जिनके कारण अधिकाश जैव प्रजातिया एक साथ विलुप्त हो गई। इसी काल में दैत्याकार डायनासोर के साम्राज्य का भी अंत हुआ। करोड़ों वर्ष पहले विलुप्त हुए उन जीवों की उपस्थिति के प्रमाण के रूप में अब हमारे समक्ष उनके जीवाश्म ही शेष हैं।
जीव शास्त्रियों का मत है कि पृथ्वी पर आज तक जितने भी जीव विकसित हुए, उनका मात्र एक प्रतिशत ही आज अस्तित्व में हैं। शेष 99 प्रतिशत जीव अब पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं। जीवों का विलुप्तिकरण सहज प्राकृतिक घटना है, जिससे बच पाना मुश्किल है।
भारत भी ऐसे कई पौधों और जीव-जंतुओं का आवास क्षेत्र है, जो विश्व में कहीं और नहीं पाए जाते। उत्तर-पूर्व के वन क्षेत्र, पश्चिम घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत छोटे हैं, मगर यहा फूलधारी पौधों की 220 प्रजातिया और 120 प्रकार की फर्न पाई जाती हैं। यहा के समुद्र में फैली मूंगे [कोरल] की चट्टानें जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उत्तर-पूर्वी वन में 1500 स्थानिक पादप प्रजातिया पाई जाती हैं। पश्चिम घाट अनेक दुर्लभ उभयचरों, सरीसृपों व विशिष्ट पादप समूहों के लिए प्रसिद्ध है।
सन् 2050 तक लगभग एक करोड़ जैव प्रजातिया विलुप्त हो जाएंगी।
वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग 18 लाख वनस्पतियों और जंतुओं की प्रजातिया ज्ञात हैं। अनुमान है कि यह संख्या इससे दस गुना अधिक हो सकती है, क्योंकि अब भी कई जैव प्रजातियों की जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं है।
एक आकलन के अनुसार वर्तमान दर जारी रही तो प्रति वर्ष 10 से 20 हजार प्रजातियों के विनाश की आशंका है। यह प्राकृतिक विलुप्तिकरण की दर से कई हजार गुना ज्यादा है।
विकास के नाम पर पर्यावरण का भारी नुकसान होता है। शहरों का विस्तार, सड़क निर्माण या सिंचाई और ऊर्जा के लिए बाध निर्माण अथवा औद्योगिकीकरण, इन सब का खामियाजा तो मूक प्राणियों और वनस्पतियों को ही चुकाना पड़ता है। मानव की शिकारी प्रवृत्ति ने भी जीवों के विलुप्तीकरण की दर में वृद्धि की है।
वन्य प्राणियों की खाल, हड्डियां, दात, नाखून आदि के व्यापारिक महत्व के चलते इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। शिकार के ही परिणामस्वरूप मॉरिशस का स्थानीय पक्षी डोडो दुनिया से सदा के लिए कूच कर गया और अनेक जीव संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ खडे़ हुए हैं।
इनमें प्रमुख हैं बाघ, सिंह, गैंडा, भालू, हाथी, पाडा, चिंकारा, कृष्ण मृग, कस्तूरी मृग, बारहसिंगा, कई वानर प्रजातिया, घड़ियाल, गंगा में पाई जाने वाली डाल्फिन आदि। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों के उपयोग से कई पक्षी संकट में हैं। विगत कुछ वर्षो में चौपायों के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दर्द निवारक औषधि डिक्लोफेनेक के दुष्परिणाम प्रकृति के सफाईकर्मी गिद्धों पर इस हद तक हुए कि आज यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है।
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
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