सोमवार, 3 जनवरी 2011

प्रदूषण मुक्त दीपावली Pollution Free Diwali

                             प्रदूषण मुक्त दीपावली
                             Pollution Free Diwali
                                                 (30-10-2010)
आज  इको क्लब के सदस्यों ने प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाये जाने बारे एक मुहीम चलाते हुए विद्यालय के सभी बच्चों को पटाके ना चलाने बारे प्रेरित किया |
इस  अवसर पर एक नारा लेखन प्रतियोगीता का भी आयोजन किया गया जिस में दो नारे सर्वश्रेष्ट चुने गए 
1. फल मिठाईयां खाएंगे -पटाखे नहीं चलाएंगे 
2. पटाखों की चिंगारी -जीवन की दुश्वारी
क्लब सदस्यों की टीम जिन्होंने अन्य को प्रेरित करने का बीड़ा उठाया और आपना काम बखूबी किया 
इनकी मेहनत के परिणाम सुखद मिलेंगे |

 इस अवसर पर बच्चों को यह भी बताया गया,
क्या आप मजे के लिए अपने बच्चे को सिगरट/बीडी पीने देते हैं? अगर नहीं तो फिर उस से हज़ारो गुना ज्यादा नुक्सान दायक पटाखे क्यूँ ?
क्या आप जानते हैं दिवाली के बाद लगभग एक महीने तक हम लोग दूषित हवा में सांस लेते हैं | पटाखों से निकले जहरीले बारूद एवं मिटटी के कण कई दिनों तक सांस के साथ जाकर हमारे फेफड़ो में जम जाते हैं और जहरीला धुंआ महीनो तक आपको अनदेखा नुक्सान करता है | आइये अपने त्योहारों को फिर से पर्यावरण के लिए अनुकूल बनाये |
दिवाली की खुशियाँ मनाने के लिए पटाखे चलाना जरुरी है?पटाखों से बहुत सारे समस्या पैदा होती है जैसे की वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और पटाखों से जलने की दुर्घटना. इतनी सारी समस्याएँ हैं फिर भी क्यूँ चलते हैं हम ये पटाखे. दिवाली के दिन सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है. दिवाली दीयों का त्यौहार हैं तो हम सिर्फ दीयों से भी मना सकते हैं ये पर्व. आओ हम इस दिवाली पटाखे न चलाने का संकल्प लें. और साफसुथरी दिवाली में भागीदारी बनायें. अपने बच्चो को समझाए "दिवाली रौशनी का त्यौहार है ना कि धुंए और बम धमाको का"
बुजुर्ग दीपावली की रात आराम से सो नहीं पाते। दमे के मरीजों के लिए तो यह रात कहर की रात की तरह होती है क्योंकि पटाखों से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा सामान्य से दस गुणा तक बढ़ जाती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक पटाखों से वातावरण में शीशा और सल्फर की मात्रा बढ़ जाती है। इसी तरह से आवाज का प्रतिशत भी तेजी से बढ़ जाता है। सबसे अधिक दिक्कत तो तेज आवाज वाले पटाखे से होती है क्योंकि आवाज पैदा करने के लिए पटाखों में खतरनाक रसायन के साथ ही सल्फर और पोटाश भर दिया जाता है जिसके कण आवाज के साथ वायुमंडल में फैल जाते हैं। बुजुर्ग व बच्चे इसे सहन नहीं कर पाते। सांस के रोगियों के लिए भी यह स्थिति काफी कष्टकारी होती है।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम १९८६ के अनुसार एक लाख रुपए तक जुर्माना व पांच साल की कैद दोनों हो सकती हैं। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पटाखे का प्रयोग शाम छह से रात दस बजे तक ही किया जाना चाहिए। अस्पताल व शिक्षण संस्थान न्यायालय धार्मिक स्थल के चारों ओर कम से कम सौ मीटर की दूरी तक पटाखे का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पङ्क्षरदों के लिए भी नुकसानदायक : बम व पटाखे का सबसे अधिक नुकसान परिंदों पर होता है क्योंकि इससे वे रात भर सो नहीं पाते। तेज आवाज की उन्हें आदत नहीं होती। पटाखा फूटते ही वे जान बचाने के लिए उडऩा शुरू कर देते हैं। इस कोशिश में परिंदे तार या झाडिय़ों से टकरा कर मर जाते हैं। हमें दीपावली की रात कम से कम पटाखे चलाने चाहिएं। इसके बिना भी दीपावली का त्योहार मनाया जा सकता है।
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)

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