विश्व ओजोन दिवस पर व्याख्यान
Lecture on World Ozone Day
DATE :- 16-09-2009
LECTURE DELIVERED BY Mr.Darshan Lal Science Master What is the ozone layer? |
The ozone layer is a deep layer in the stratosphere, encircling the Earth, that has large amounts of ozone in it. The layer shields the entire Earth from much of the harmful ultraviolet radiation that comes from the sun. Interestingly, it is also this ultraviolet radiation that forms the ozone in the first place. Ozone is a special form of oxygen, made up of three oxygen atoms rather than the usual two oxygen atoms. It usually forms when some type of radiation or electrical discharge separates the two atoms in an oxygen molecule (O2), which can then individually recombine with other oxygen molecules to form ozone (O3). The ozone layer became more widely appreciated when it was realized that certain chemicals mankind manufactures, called chlorofluorocarbons, find their way up into the stratosphere where, through a complex series of chemical reactions, they destroy some of the ozone. As a result of this discovery, an international treaty was signed, the the manufacture of these chemicals was stopped. The ozone layer has since begun to recover as a result of these efforts.
This stratospheric ozone, which protects us from the sun, is good. There is also ozone produced near the ground, from sunlight interacting with atmospheric pollution in cities, that is bad. It causes breathing problems for some people, and usually occurs in the summertime when the pollution over a city builds up during stagnant air conditions associated with high pressure areas.
ओज़ोन परत समतापमंडल के तापमान को संतुलित बनाए हुए है तथा सूर्य से निकलने वाली हानिकारण पराबैंगनी किरणें को अवशोषित कर ग्रह पर जीवन की रक्षा करता है। ओज़ोन कण अथवा ओज़ोन परत समताप मंडल में 15-35 किमी की ऊँजाई पर स्थित है। यह माना जाता है कि लाखों वर्षों से वायुमंडलीय संरचना में अधिक बदलाव नहीं आया है। लेकिन पिछले पचास वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति के उत्कृष्ट संतुलन को वायुमंडल में हानिकारक रसायनिक पदार्थों को छोड़कर अस्त-व्यस्त कर दिया है जो धीरे-धीरे इस जीवरक्षक परत को नष्ट कर रहा है।
ओज़ोन की उपस्थिति की खोज पहली बार 1839 ई0 में सी एफ स्कोनबिअन के द्वारा की गई जब वह वैद्युत स्फुलिंग का निरीक्षण कर रहे थे। लेकिन 1850 ई0 के बाद ही इसे एक प्राकृतिक वायुमंडलीय संरचना माना गया। ओज़ोन का यह नाम ग्रीक (यूनानी) शब्द ओज़ेन (ozein) के आधार पर पड़ा जिसका अर्थ होता है "गंध" इसके सांन्द्रित (गाढ़ा) रूप में एक तीक्ष्ण तीखी/कड़वी) गंध होती है। 1913 ई0 में, विभिन्न अध्ययनों के बाद, एक निर्णायक सबूत मिला कि यह परत मुख्यतः समतापमंडल में स्थित है तथा यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। 1920 के दशक में, एक ऑक्सफोर्ड वैज्ञानिक, जी एम बी डॉब्सन, ने सम्पूर्ण ओज़ोन की निगरानी (मानीटर करने) के लिए यंत्र बनाया।
समताप मंडल में ओज़ोन की उपस्थिति विषुवत-रेखा के निकट अधिक सघन और सान्द्र है तथा ज्यों-ज्यों हम ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, धीरे-धीरे इसकी सान्द्रता कम होती जाती है। यह वहाँ उपस्थित हवाओं की गति, पृथ्वी की आकृति और इसके घूर्णन पर निर्भर करता है। ध्रुवों पर मौसम के अनुसार यह बदलता रहता है। ओज़ोन परत की क्षीणता दक्षिणी ध्रुव जो अंटार्कटिका पर है, पर स्पष्ट दिखाई देती है, जहाँ एक विशाल ओज़ोन छिद्र है। उत्तरी ध्रुव में ओज़ोन परत बहुत अधिक नष्ट नहीं हुई है। विश्व मौसम-विज्ञान संस्था (WMO) ने ओज़ोन क्षीणता की समस्या को पहचानने और संचार में अहम भूमिका निभायी है। चूँकि वायुमंडल की कोई अंतर्राष्ट्रीय सीमा नहीं है, यह महसूस किया गया कि इसके उपाय के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर विचार होना चाहिए।
(UNEP) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण योजना ने विएना संधि की शुरूआत की जिसमें 30 से अधिक राष्ट्र शामिल हुए। यह पदार्थों पर एक ऐतिहासिक विज्ञप्ति थी, जो ओज़ोन परत को नष्ट करते हैं तथा इसे 1987 ई0 में मॉन्ट्रियल में स्वीकार कर लिया गया। इसमें उन पदार्थों की सूची बनाई गई जिनके कारण ओज़ोन परत नष्ट हो रही है तथा वर्ष 2000 तक क्लोरोफ्लोरो कार्बन के उपयोग में 50% तक की कमी का आह्वान किया गया। क्लोरोफ्लोरो कार्बन अथवा सी एफ सी को हरितगृह प्रभाव के लिए ज़िम्मेदार गैस माना जाता है। यह मुख्यतः वातानुकूलन मशीन, रेफ्रिजरेटर से उत्सर्जित होती है तथा एरोसोल अथवा स्प्रे इसके प्रणोदक (बढ़ाने वाला) हैं। एक अन्य बहुत ज्यादा उपयोग किया जाने वाला रसायन मिथाइल ब्रोमाइड है जो ओज़ोन परत के लिए एक चेतावनी है। यह ब्रोमाइड उत्सर्जित करता है जो क्लोरीन की तरह 30-50 गुणा ज्यादा विनाशकारी है। इसका उपयोग मिट्टी, उपयोगी वस्तुओं और वाहन ईंधन संयोजी के लिए धूमक के रूप में होता है (रोगाणुनाशी के रूप में प्रयोग किया जाने वाला धुआँ)। वर्तमान समय में कोई ऐसा रसायन मौजूद नहीं है जो पूरी तरह से मिथाइल ब्रोमाइड के उपयोग को हटा दें। यह स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि ओज़ोन परत की आशा के अनुरूप प्राप्ति पदार्थों के मॉन्ट्रयल प्रोटोकॉल के बिना असंभव है जो ओज़ोन परत को नष्ट करता है (1987) जिसने ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले सभी पदार्थों के उपयोग में कमी के लिए आवाज उठाया। विकासशील राष्ट्रों के लिए इसकी अंतिम तिथि 1996 थी, जबकि भारत को 2010 ई0 तक इस बड़े विनाशकारी रसायन को पूर्णतः समाप्त कर देना है। प्रस्तुति:- ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
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