बुधवार, 4 मई 2011

धरती पर बढ़ता शहरीकरण का बोझ : गोष्ठी Urbanization

धरती पर बढ़ता शहरीकरण का बोझ : गोष्ठी Urbanization
कल्ब सदस्य 
महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि आज़ाद भारत से कुटीर उद्योग नहीं समाप्त होने चाहियें परन्तु आज उस से उल्ट हुआ है| आज गावं में लुहार के पास काम नहीं है क्यूंकि हल बैल के स्थान पर आ गए टरेक्टर,आज दर्जी के पास काम नहीं है क्यूंकि रेडीमेड गारमेंट्स की धूम मची है आज मोची,जुलाहा,भड्भुन्जा,कुम्हार,मुश्की,सुनार,बुनकर,खेत मजदूर सब के सब काम से खाली है आबादी बढ़ी है और काम कम हुआ है ऐसी स्तिथि में गावं से मंगत रामू श्यामू हर कोई भागा है शहर की और इसमें  चाहे शहरी चकाचौंध का आकर्षण हो या रोटी कमाने की मजबूरी शहर सब को खीच रहा है अपनी और,फिर शुरू होता है  स्लम बस्तियों का घुटन से भरा जीवन, दुनिया की आधी आबादी शहरों में बसने लगी है विकासशील देशों में यह समस्या ज्यादा गंभीर है शहरों में सीवरेज,जलापूर्ति,बिजली व अन्य सेवाएं अनावश्यक तनाव ग्रसित हो रही हैं |
 भारत जैसे विकासशील देशों के संदर्भ में यह स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर है। वजह यह कि विश्व संसाधन संस्थान के मुताबिक विकासशील देशों में शहरी आबादी साढ़े तीन प्रतिशत  सालाना की दर से बढ़ रही है, जबकि विकसित देशों में यह दर एक प्रतिशत से भी कम है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक अगले 20 सालों में शहरों की आबादी जितनी बढ़ेगी, उसका 95 प्रतिशत बोझ विकासशील देशों पर ही पड़ेगा। यानी 2030 तक विकासशील देशों में दो अरब और लोग शहरों में रहने लगेंगे। शहरों पर ज्यों-ज्यों बोझ बढ़ रहा है, लोगों को मिलने वाली सुविधाएं घट रही हैं। बेहतर जिंदगी की चाह में लोग शहरों की ओर भागते हैं, लेकिन वास्तव में उन्हें मुसीबतें ही मिलती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विकासशील देशों में 70 प्रतिशत से ज्यादा करीब 90 करोड़ आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है। वर्ष 2020 तक यह संख्या दो अरब हो जाने का अनुमान है। ऐसे में जहां उनके लिए स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ती हैं, वहीं पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगर शहरों पर बढ़ रहे बोझ और प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया गया तो एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले बड़े शहरों पर भविष्य में बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा काफी बढ़ जाएगा। दुनिया के ऐसे 21 बड़े शहरों में से 75 फीसदी विकासशील देशों में ही हैं। कुछ आंकड़ों के मुताबिक 2015 तक ऐसे 33 में से 27 शहर विकासशील देशों में होंगे।
शहरों में विकास और बढ़ती जनसंख्या के चलते प्रदूषण भी खूब बढ़ रहा है। तेजी से विकास कर रहे चीन के खाते में दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 16 शहर हैं। प्रदूषण के चलते शहरों में हर साल करीब दस लाख लोग समय से पहले मर जाते हैं। इनमें ज्यादातर विकासशील देशों के ही होते हैं।
कल्ब सदस्य

गावं यदि इतने सक्षम होते कि सब को काम दिलवा सकते तो शायद आज यह स्तिथि ना आती निम्न कुछ उपाय जो किये जा सकते है शहरीकरण को रोकने के लिए,
1. कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए और इन के उत्पादों को प्रचारित किया जाए.
2. नयें शिक्षण संस्थान,मेडिकल कोलिज,व्यपारिक मंडियां ग्रामीण इलाको में स्थापित हों.
3. बिजली,पेयजल,शिक्षा,चिकत्सा,परिवहन और सड़कें आदि सेवाओं का गावं दर गावं विकास हो.
4. ग्राम निकायों का सुदृडीकरण किया जाए. 
प्रस्तुति:- इमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर,जिला यमुना नगर हरियाणा
द्वारा--दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
    जनसत्ता मे 
 

5 टिप्‍पणियां:

Darshan Lal Baweja ने कहा…

फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ
Swapnil Jain चित्रकारों के पास भी काम नहीं है

Darshan Baweja जी हाँ स्वप्निल जी

J.s. Parmar issiliye to crime badhtaa ja raha hai.....jo jo khali hai aajivikaa chalane ke liye ab crime karte hai....

Sangeeta Sharma bahot bada chinta ka vishay hai ab kitir udhyog...

सुधांशु शेखर सिंह दर्शन जी अब स्माल स्केल कि बारी है टाटा और रेलिंस जैसे ही बचेंगे.

Darshan Baweja जी सही कहा आपने

Ravinder Punj सही कह रहे हैं आप श्रीमान जी।

Ruchi Shrivastava pr mujhe lgta hai sarkar ke sath me ye log bhi iske jimmedar hai kyuki inhone samy ke sath apne me koi change nhi kiya or jo samy ke sath khud ko change nhi krte wo future me khud bhikhtm ho jayte hai
Yesterday at 8:18pm · Like
Raj Bhatia गांधी ने सोचा नही था कि फ़िर से विदेशी बने गी हमारी

Naresh Singh Rathore ये एक कटु सत्य है जिससे हमारे बुध्दिजीवी वर्ग ने आँखे मूँद रखी है | क्यों कि उनकी जेब भरी हुयी है |

Darshan Baweja चीनी कम्बलो यानी ब्लेंकेट ने तो रुई पिंजने वालो को भी वेळला यानी खाली कर दिया है

Darshan Lal Baweja ने कहा…

Shrish Benjwal Sharma सही कहते हैं आप। कारीगर अपना पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करने को विवश हैं।

Umesh Pratap Vats ये तो गाँधी की तस्वीर लगाने वालों से पूछों कि क्या गाँधी जी यही कहकर गए थे कि सारे कुटीर उद्योग बंद कर मेरी तस्वीर लगाकर वोट की राजनीति करना।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Prasansneey prayas.

............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।

रविन्‍द्र पुंज ने कहा…

बधाई हो सर।

कविता रावत ने कहा…

bahut badiya prastuti... aabhar