विश्व ओजोन दिवस पर संगोष्ठी world ozone layer preservation day
राजकीय उच्च विद्यालय मंडेबरी(इमली इको क्लब राजकीय वरिष्ठ माध्य्मिल विद्यालय अलाहर के साथ सयुंक्त तत्वाधान में) मे विश्व ओजोन दिवस के उपलक्ष्य में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।संगोष्ठी में सम्बोधित करते विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल ने बताया कि प्रत्येक वर्ष सोलह सितम्बर को विश्व भर में ओजोन दिवस मनाया जाता है। ओजोन परत पृथ्वी पर जीवन की सुनिश्चितता के लिए अति महत्वपूर्ण है ओजोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय से इसे बचाने के लिए विश्व भर में जागरूकता अभियान चलाये जा रहें हैं। वैज्ञानिकों को सन् 1970 के दौरान ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1985 में संपूर्ण विश्व ने वियना में इस समस्या के निपटने के लिए प्रयत्न करने आरंभ किए। इस ऐतिहासिक पहल को वियना संधि के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद समूचे विश्व ने इस मुददे पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया जिसके फलस्वरूप 1987 मॉन्ट्रियल संधि हुई। सन् 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्ट्रियल संधि की स्मृति में सोलह सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। विश्व ओजोन दिवस को मनाने के पीछे यह उद्देश्य था कि विश्व समुदाय के जेहन में ओजोन की परत बचाने के लिए जागरूकता जाती उत्पन्न की जाए और इस कार्य में उल्लेखनीय सफलताएं मिली भी हैं।
मौलिक मुख्याध्यापक प्रदीप सरीन ने बच्चो को सम्बोधित करते हुए कहा कि असल में ओजोन की परत को हानि पहुंचाने में मनुष्य की ओद्योगिक तरक्की और विलासता के साधन जिम्मेदार हैं। वे रसायन जो ओजोन परत को क्षति पहुंचाते है, उन्हें ओजोन क्षयक रसायन कहते हैं। इनमें क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (सी एफ सी), मिथइल ब्रोमाइड आदि प्रमुख है । इनकी खोज सन् 1928 में हुई थी। क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स फ्लोरीन, क्लोरीन व कार्बन से मिलकर बनते है । सी एफ सी का उपयोग फ्रीज व एअर कंडीशनर में प्रशीतलक के रूप में होता है।
सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड भी ओजोन की मात्रा को कम करने में जिम्मेदार है।
क्या है ओजोन व ओजोन परत
ओजोन हल्के नीले रंग की सक्रिय वायुमंडलीय गैस है। यह समताप मंडल में प्राकृतिक रूप से बनती है। यह आक्सीजन का ही रूप है। एक ओजोन अणु में तीन आक्सीजन परमाणु होते है।जो कि पृथ्वी से 20-25 किमी की ऊँचाई पर सबसे अधिक है और लगभग 75 किमी की ऊचांई से ज्यादा पर यह न के बराबर हो जाता है। यह कवच दिन में सूर्य की तेंज पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है, और रात में पृथ्वी को ठंडी होने से बचाता है।
क्यों जरूरी है इसे बचाना
ओजोन गैस रूपी यह कवच दिन में सूर्य की तेंज पराबैगनी विकिरणों से हमारी रक्षा करता है, और रात में पृथ्वी को ठंडी होने से बचाता है। यदि पृथ्वी पराबैगनी विकिरणों की चपेट मे आ जाए तो पृथ्वी पर जीवन खतरे मे पड़ जाएगा व मनुष्य समेत समस्त जीवों को त्वचा के कैंसर, ऑंखों का मोतियाबिंद अधिक होना, पाचन तंत्र में कमजोरी, पौधों की उपज घटना, समुद्रीय पारितंत्र में क्षति और मत्सय उत्पादन में कमी व अन्य खतरों से जूझना पड़ सकता है।
क्या है बचाव के उपाय
ओजोन की परत को नष्ट होने से बचाने के लिए उद्योगो से कुछ हानिकारक रसायनों को बाहर करना होगा। चार प्रमुख रसायन क्लोरो फ्लोरों कार्बन, सीटीसी, हेलन्स और हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करना होगा। वैश्विक प्रयासों से विकासशील देशो को तकनीकी व वित्तीय मदद देकर उनकी इंडस्ट्री से इन क्षयकारी रसायनों को हटाकर वैकल्पिक अहानिकारक रसायनों के प्रयोग को बढ़ावा देने से वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक ओजोन परत सामान्य स्तर पर आ जाएगी। वैश्विक स्तर पर इस बारे सामूहिक प्रयास जारी हैं और आशानुरूप पृथ्वी पर जीवन को बचाने की सम्भावना हेतु आमजन के लिए जागरूकता संचार भी जारी है।
अखबारों मे
राजकीय उच्च विद्यालय मंडेबरी(इमली इको क्लब राजकीय वरिष्ठ माध्य्मिल विद्यालय अलाहर के साथ सयुंक्त तत्वाधान में) मे विश्व ओजोन दिवस के उपलक्ष्य में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।संगोष्ठी में सम्बोधित करते विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल ने बताया कि प्रत्येक वर्ष सोलह सितम्बर को विश्व भर में ओजोन दिवस मनाया जाता है। ओजोन परत पृथ्वी पर जीवन की सुनिश्चितता के लिए अति महत्वपूर्ण है ओजोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय से इसे बचाने के लिए विश्व भर में जागरूकता अभियान चलाये जा रहें हैं। वैज्ञानिकों को सन् 1970 के दौरान ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1985 में संपूर्ण विश्व ने वियना में इस समस्या के निपटने के लिए प्रयत्न करने आरंभ किए। इस ऐतिहासिक पहल को वियना संधि के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद समूचे विश्व ने इस मुददे पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया जिसके फलस्वरूप 1987 मॉन्ट्रियल संधि हुई। सन् 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्ट्रियल संधि की स्मृति में सोलह सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। विश्व ओजोन दिवस को मनाने के पीछे यह उद्देश्य था कि विश्व समुदाय के जेहन में ओजोन की परत बचाने के लिए जागरूकता जाती उत्पन्न की जाए और इस कार्य में उल्लेखनीय सफलताएं मिली भी हैं।
मौलिक मुख्याध्यापक प्रदीप सरीन ने बच्चो को सम्बोधित करते हुए कहा कि असल में ओजोन की परत को हानि पहुंचाने में मनुष्य की ओद्योगिक तरक्की और विलासता के साधन जिम्मेदार हैं। वे रसायन जो ओजोन परत को क्षति पहुंचाते है, उन्हें ओजोन क्षयक रसायन कहते हैं। इनमें क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (सी एफ सी), मिथइल ब्रोमाइड आदि प्रमुख है । इनकी खोज सन् 1928 में हुई थी। क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स फ्लोरीन, क्लोरीन व कार्बन से मिलकर बनते है । सी एफ सी का उपयोग फ्रीज व एअर कंडीशनर में प्रशीतलक के रूप में होता है।
सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड भी ओजोन की मात्रा को कम करने में जिम्मेदार है।
क्या है ओजोन व ओजोन परत
ओजोन हल्के नीले रंग की सक्रिय वायुमंडलीय गैस है। यह समताप मंडल में प्राकृतिक रूप से बनती है। यह आक्सीजन का ही रूप है। एक ओजोन अणु में तीन आक्सीजन परमाणु होते है।जो कि पृथ्वी से 20-25 किमी की ऊँचाई पर सबसे अधिक है और लगभग 75 किमी की ऊचांई से ज्यादा पर यह न के बराबर हो जाता है। यह कवच दिन में सूर्य की तेंज पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है, और रात में पृथ्वी को ठंडी होने से बचाता है।
क्यों जरूरी है इसे बचाना
ओजोन गैस रूपी यह कवच दिन में सूर्य की तेंज पराबैगनी विकिरणों से हमारी रक्षा करता है, और रात में पृथ्वी को ठंडी होने से बचाता है। यदि पृथ्वी पराबैगनी विकिरणों की चपेट मे आ जाए तो पृथ्वी पर जीवन खतरे मे पड़ जाएगा व मनुष्य समेत समस्त जीवों को त्वचा के कैंसर, ऑंखों का मोतियाबिंद अधिक होना, पाचन तंत्र में कमजोरी, पौधों की उपज घटना, समुद्रीय पारितंत्र में क्षति और मत्सय उत्पादन में कमी व अन्य खतरों से जूझना पड़ सकता है।
क्या है बचाव के उपाय
ओजोन की परत को नष्ट होने से बचाने के लिए उद्योगो से कुछ हानिकारक रसायनों को बाहर करना होगा। चार प्रमुख रसायन क्लोरो फ्लोरों कार्बन, सीटीसी, हेलन्स और हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करना होगा। वैश्विक प्रयासों से विकासशील देशो को तकनीकी व वित्तीय मदद देकर उनकी इंडस्ट्री से इन क्षयकारी रसायनों को हटाकर वैकल्पिक अहानिकारक रसायनों के प्रयोग को बढ़ावा देने से वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक ओजोन परत सामान्य स्तर पर आ जाएगी। वैश्विक स्तर पर इस बारे सामूहिक प्रयास जारी हैं और आशानुरूप पृथ्वी पर जीवन को बचाने की सम्भावना हेतु आमजन के लिए जागरूकता संचार भी जारी है।
अखबारों मे