विश्व मलेरिया दिवस मनाया गया World Malaria day
अखबारां में..........
आज विश्व
मलेरिया दिवस के अवसर पर इमली इको क्लब अलाहर एवं सी.वी. रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर के सदस्यों ने एक विचार
गोष्ठी आयोजित की, इस गोष्ठी में मलेरिया रोग के इतिहास, फैलने के कारणों,
जागरूकता का आभाव व रोकथाम के उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई। क्लब सदस्यों
को मलेरिया से सम्बन्धित ताज़ा जानकारियों का पता चला और इस वे रोग के इतिहास को
जान कर बहुत अचंभित हुए। विज्ञान अध्यापक व क्लब प्रभारी दर्शन लाल ने बताया कि अब
दुनिया की मानव आबादी के लिए वह दिन दूर नहीं है जल्द ही मलेरिया
को रोकने वाला टीका आने वाला है। ऐसा दर्शन लाल ने नेचर कम्यूनिकेशन पत्रिका में छपे ब्रिटिश
वैज्ञानिकों के शोधपत्र के हवाले से कहा है।
मलेरिया के रोकथाम के विश्वव्यापी प्रयासों के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा
कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग सात लाख मानव मलेरिया के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
इस रोग का इतिहास बताता है कि आबादी की आबादी खत्म की है इसने, इसका उपाय
सर्वप्रथम डी.डी.टी.के रूप में समक्ष आया।
पूरी दुनिया में लाखो टन डी.डी.टी. का छिड़काव किया गया, कईं देशो में अलग से
मलेरिया उन्मूलन विभाग बनाए गए लेकिन डी.डी.टी.के रूप में मिला उपाय भी मलेरिया के
उन्मूलन में सफल ना हो सका वरन् डी.डी.टी. अन्य कईं पर्यावरणीय समस्याएं ले कर पेश
आया। मलेरिया पर दवा के विकास का इतिहास को देखा जाए तो विश्व में मलेरिया
के विरूद्ध टीके विकसित किये जा रहे है यद्यपि अभी तक 100% सफलता नहीं मिली है। पहली बार प्रयास 1967 में चूहों
पर किया गया था जिसे जीवित किंतु विकिरण से उपचारित बीजाणुओं का टीका दिया गया।
इसकी सफलता दर 60% थी। उसके बाद से ही मानवों पर ऐसे प्रयोग
करने के प्रयास चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण करने में सफलता प्राप्त की
कि यदि किसी मनुष्य को 1000 विकिरण-उपचारित संक्रमित मच्छर
काट लें तो वह सदैव के लिए मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर लेगा। इस धारणा पर वर्तमान में
काम चल रहा है और अनेक प्रकार के टीके परीक्षण के भिन्न दौर में हैं। एक अन्य सोच
इस दिशा में है कि शरीर का प्रतिरोधी तंत्र किसी प्रकार मलेरिया परजीवी के बीजाणु
पर मौजूद सीएसपी (सर्कमस्पोरोज़ॉइट प्रोटीन) के
विरूद्ध एंटीबॉडी बनाने लगे। इस सोच पर अब तक सबसे ज्यादा टीके बने तथा परीक्षित किये गये हैं। SPf66 पहला टीका था जिसका क्षेत्र परीक्षण हुआ, यह शुरू
में सफल रहा किंतु बाद मे सफलता दर 30% से नीचे जाने से असफल
मान लिया गया। आज RTS,S/AS02A टीका परीक्षणों में
सबसे आगे के स्तर पर है। आशा की जाती है कि पी. फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं
परीक्षण करने में आसानी होगी।
मलेरिया का टीका खोजना डॉक्टरों के लिए हमेशा से ही एक बड़ी
चुनौती रहा है। दुनिया भर के वैज्ञानिक
मलेरिया उन्मूलन का कोई कारगर उपाय खोजने में लगे रहे बहुत से रासायनिक और गैर-रासायनिक
मलेरिया उन्मूलन के तरीको पर काम हुआ तब जाकर अब मलेरिया से निबटने का उपाय यानि
हथियार वैज्ञानिकों के हाथ लगने वाला ही है। ब्रिटेन
के वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोकने का टीका लगभग विकसित कर ही लिया है।
इन ब्रिटिश वैज्ञानिकों को इस टीके के पूर्व परिणामों में पूर्ण सफलता मिली है यह
टीका मलेरिया परजीवी की सभी प्रजातियों जैसे प्लाज्मोडियम वाईवेक्स, प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लाज्मोडियम मलेरियाई और
प्लाज्मोडियम ओवेल पर कारगर होगा परन्तु अभी यह शोध प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पर
केंद्रित है। प्लाज्मोडियम
फैल्सीपरम के
जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण
करने में तेज़ी आयी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीटयूट के डॉ़ सिमोन ड्रापर की अगुवाई
में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अब एक ऐसा टीका विकसित किया है जो शरीर में खासतौर
पर प्लाज्मोडियम फाल्सिपरम को निष्क्रिय कर देता है।
मलेरिया परजीवी
रक्त की लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करके तीव्र गुणित होता है और फिर बीमारी को
जन्म देता है। शोध दल के वैज्ञानिकों ने जो तरीका अपनाया वो था कि सर्वप्रथम उस
प्रोटीन को पहचनाना जो मलेरिया परजीवी को लाल रक्त कणिकाओं तक पहुचने को आसान
बनाता है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर ‘बासिजिन’
नामक प्रोटीन को चुनता है और इस प्रोटीन के साथ ‘आर.एच.-5’ प्रोटीन को जोड़ देता है। इस क्रिया में लाल रक्त कणिकाओं में उसके लिए
प्रवेशद्वार खुल जाता है जहां वह तीव्र गुणित होकर मलेरिया रोग को प्रकट करता है।
वैज्ञानिकों ने इस
प्रक्रिया को रोकने के तरीकों पर काम किया और सफलता मिली, ‘आर.एच.-५’ प्रोटीन के
विरुद्ध एंटीबॉडीज को प्रेरित कर के इस रोग को प्रकट होने से पहले ही रोकने में
सफलता प्राप्त कर ली है।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों का यह सफल शोध नेचर कम्यूनिकेशन पत्रिका में छपा है। मलेरिया
का टीका 2015 तक बाजार में आ जायेगा। यह भरोसा अणु जीव वैज्ञानिक डॉ. जो कोहेन
ने दिलाया है। 68 वर्षीय इस मृदुभाषी वैज्ञानिक के पास मलेरिया के टीके का पेटेंट है। इस पर उन्होंने इसी सप्ताह तीसरे चरण का
परीक्षण पूरा कर दिया है। उनका दावा
है कि इसके टीकाकरण से पांच से लेकर 17 महीने के शिशुओं में 56
फीसद तक मलेरिया की रोकथाम में सफलता मिली है। इस दवा को गंभीर बीमारी के दौरान तीन खुराक देने पर 47 प्रतिशत सफलता हासिल हुई है।
इसका परीक्षण सब सहारा क्षेत्र के सात देशों में किया गया है। ये सारे परीक्षण टीके को बाजार में उतारने से पहले हो गये
बताये जाते है। और इसके प्रभावों को
कुछ माह के शिशुओं से लेकर बड़े बच्चों तक पर अच्छी तरह परखा जा चुका है। अगले दो से तीन साल में इंसानों
पर भी इस टीके का इस्तेमाल शुरू करने की योजना है। अखबारां में..........
प्रस्तुति: ईमली
इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा
द्वारा:
दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)
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