सोमवार, 30 जुलाई 2012

सेहत बनाता नहीं बिगाडता है खुले मे शौच जाना total sanitation campaign

सेहत बनाता नहीं बिगाडता है खुले मे शौच जाना Total Sanitation Campaign

संगोष्ठी का आयोजन
रा.व.मा.वि.अलाहर मे  सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के अंतर्गत प्रधानाचार्य श्री नरेंद्र धींगड़ा की अध्यक्षता में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस के अंतर्गत सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करते हुए वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे।
इमली इको क्लब के प्रभारी दर्शन लाल ने बताया कि सुबह की सैर सेहत के लिए बहुत जरूरी है परन्तु सैर पर जाने वाले यदि खेत या नजदीकी खुले स्थानों पर शौच भी जाते हैं तो ऐसी गातिविधि से सेहत बनती नहीं बिगड़ती है। ऐसा जरूरी नहीं है कि केवल गरीब ही खुले में शौच को जाता है बल्कि सम्पन्न लोग भी खुले में शौच की परम्परा को सेहतवर्धक मानते हैं। इसी सोच को बदलने के लिए एक विशाल जागरूकता अभियान की आवश्यकता है। अध्यापक सुनील कुमार ने अपने वक्तव्य में बताया कि गावों के साथ साथ शहरों में भी खुले में शौच जाने का प्रचलन यथावत बना हुआ है। यमुनानगर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि यहाँ बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर रहते हैं जो यहाँ की विभिन्न इण्डस्ट्रीज में काम करते हैं और  छोटे छोटे कमरों में एक साथ रहते हैं जहां उन्हें शौचालय की सुविधा प्राय नहीं मिलती। पश्चिमी यमुना नहर के किनारे किनारे प्रात और शाम को बहुत से लोगों को खुले में शौच जाते देखा जा सकता है। मानसून के दिनों में नहर की पटरी पर गुजरना भी साहस का कार्य माना जा सकता है।
प्रवक्ता संजय शर्मा जी
प्रवक्ता संजय शर्मा ने बताया कि शौचालय किसी भी राष्ट्र के विकास की न्यूनतम शर्त मानी जा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत ऐसे देशों का मुखिया है जहां खुले में लोग शौच जाते हैं क्योंकि उन्हें शौचालय की सामान्य सुविधाएं हासिल नहीं हैं। भारत में 60 प्रतिशत लोग आज तक खुले में शौच को जाते हैं यानि कि दुनिया में जितने लोग खुले में शौच जाते हैं उनमें से 58 प्रतिशत भारतीय हैं। दुनिया के कुल 11 देशों में 81 प्रतिशत आबादी शौच की उचित सुविधा से वंचित है जिनमें भारत और उसके चार पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान, नेपाल तथा बांग्लादेश भी शामिल हैं। वैसे भारत के बाद इस मामले में इंडोनेशिया तथा चीन का नंबर आता है लेकिन इन दोनों देशों में ऐसे लोगों की संख्या भारत की तुलना में बहुत कम है। खुले में शौच जाना बीमारियों के साथ साथ अन्य संगीन अपराधों को भी जन्म देता है।
श्रमदान करते क्लब सदस्य
इस अभियान के अंतर्गत इको क्लब सदस्यों ने श्रमदान किया और खुद की व अपने आसपास के स्थानों वे सामुदायिक स्थलों की सफाई का महत्व समझा। क्लब सदस्यों व अध्यापको ने महात्मा गांधी के सपने को साकार करने का प्रण लिया।
इस अवसर पर क्लब सदस्य कपिल, अंशुल, अरुण, शिवम, वंशिका, सोनम, मानक दिव्या का योगदान सराहनीय रहा।
अखबारों  में 
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा (विज्ञान अध्यापक)

बुधवार, 6 जून 2012

विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया World Environment Day

विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया  World Environment Day
आज राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अलाहर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया  गया इस उपलक्ष्य में  इको रैली ,पेंटिंग प्रतियोगिता और गोष्ठी का आयोजन किया गया, इमली इको क्लब के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए क्लब प्रभारी दर्शन लाल विज्ञान अध्यापक ने बताया कि दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस प्रति वर्ष 5 जून  को मनाया जाता है पर्यावरण का दूषित होना आज वैश्विक चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है। इसके प्रति चेतना जागृत करने के उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन 1972 से हर वर्ष 5 जून को संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा आरम्भ किया गया था । विश्व पर्यावरण दिवस मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य  पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और आम जनता को पर्यावरण के प्रति प्रेरित करना था। मनुष्य को पृथ्वी पर आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रदूषण को कम करना ही होगा क्यूंकि प्रदूषण न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। मनुष्य के आसपास जो वायुमंडल है वो पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण का जीवजगत  के स्वास्थ्य एवं जीवन निर्वाह से गहरा सम्बन्ध है। पर्यावरण को स्वच्छ  बनाए रखने में प्रकृति का विशेष महत्व है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ा  नहीं कि पर्यावरण दूषित हुआ नहीं। पर्यावरण के दूषित होते ही जीव- जगत रोग ग्रस्त हो जाता है।
  क्लब के सदस्यों के द्वारा इस अवसर पर एक इको मार्च रैली का आयोजन किया गया क्लब सदस्यों ने पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ और पर्यावरण को बचाना है के नारे लगा कर इस दिवस बारे जागरूकता संचार किया, इस अवसर पर एक गोष्टी भी की गयी जिस में अध्यापको ने क्लब सदस्यों को विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में बताया। 
जो चंद प्रयास हम अपने स्तर पर कर सकते हैं, उनमें प्रमुख हैं जन्मदिन,विवाह की वर्षगांठ जैसे प्रमुख अवसरों पर एक पेड़ लगायें, मित्रों को उपहार में एक पौधा दें, अनावश्यक नल खुला रख पानी बहता न छोडें, अनावश्यक बिजली की बत्ती जलती न छोडें, गाड़ी धोने या पौधों को पानी देने में इस्तेमाल किया पानी का प्रयोग करें। इस अवसर पर सभी सदस्यों कपिल, हिमांशु,शिवम,ज्योति,निशा,काजल,दिव्या,रणबीर सिंह,
किरण, का योगदान सराहनीय था।
दैनिक  जागरण
 अमर उजाला
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  द्वारा: दर्शन लाल बवेजा (विज्ञान अध्यापक)
 

रविवार, 27 मई 2012

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस International Biodiversity Day

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस International Biodiversity Day 
22 मई 2012 को राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया गया इस अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इमली इको क्लब के सदस्यों ने बड़े ही उत्साह के साथ इस विचार गोष्ठी में भाग लिया और वक्ताओं के वक्तव्य सुने। इस अवसर पर क्लब सदस्यों को जैव विविधता के बारे में बताया गया और इसके संरक्षण के प्रति संकल्प लिया गया।
क्षेत्र भ्रमण करते और जैव विविधता को समझते सदस्य
विज्ञान अध्यापक व क्लब इंचार्ज श्री दर्शन लाल ने बताया कि हमारे सौर मंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां जीवन है और जीवन के साथ साथ इसके के असंख्य रूप विद्यमान हैं। जीवन में यही विविधता जैव विविधता कहलाती है। जैव विविधता के अंतर्गत पृथ्वी पर पाए जाने वाले सारे  जीव-जंतु, वनस्पतियां और सूक्ष्मजीव सम्मिलित होते हैं। पृथ्वी पर जीवन के असंख्य रूप पाए जाते हैं असंख्य   प्रजातियां पाई जाती हैं।  चम्पा, चमेली, कनेर, कमल एवं गुलाब फूलदार पौधे और नागफनी व खेजड़ी  रेगिस्तानी पौधे नीम, पीपल और वट जैसे विशाल वृक्ष, हिरण, खरगोश और मोर जैसे सुंदर जीवों के साथ शेर एवं बाघ, हाथी, मोर, कबूतर, मैना, गौरैया उपस्थित हैं जो पृथ्वी पर जीवन की विविधता बताते है। पृथ्वी का कोई भी स्थान गिस्तान , महासागर, हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र या फिर बर्फीली धरती, जीवन सभी दूर-दराज जगहों पर जीवन अपने अनगिनत रूपों में खिलखिला रहा है। ज़मीन से कहीं गुणा अधिक जैव विविधता समुद्रों-महासागरों में मिलती है।महासागरों में कोरल रीफ की आश्चर्यजनक रंग-बिरंगी दुनिया उपस्थित है। महासागरों में मिलने वाली वाली हज़ारों किस्म की मछलियां और अनेक जीव जीवन की विविधता का अनुपम उदाहरण हैं। अब तक पृथ्वी पर जीवों एवं वनस्पतियों की करीब 18 लाख प्रजातियों की पहचान हो चुकी है और यह अनुमान है कि इनकी वास्तविक संख्या इससे दस गुना अधिक हो सकती है । सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर दिखाई देने वाले जीव जगत से कहीं अधिक तादाद तो सूक्ष्म जीवों की है जिन्हें हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते हैं । एक ग्राम मिट्टी में करीब 10 करोड़ जीवाणु और पचास हज़ार फफूंद जैसे जीव होते हैं । अत्यंत छोटे होने के बावजूद जीवन के स्थायित्व में सूक्ष्मजीव जटिल अपशिष्ट पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित करके पर्यावरण स्वच्छ करते हैं। यदि सूक्ष्मजीव न हों तो पृथ्वी पर जीवों की लाशों व पत्तों का ढेर इतना बढ़ जाएगा कि पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं रहेगा। सूक्ष्मजीव ही तो खाद्य सुरक्षा का आधार होते हैं। सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियां मिट्टी से विभिन्न पोषक तत्वों खास तौर पर नाइट्रोजन को फसलों तक पहुंचाते हैं जिससे फसल को पोषण प्राप्त होता हैं। यह सूक्ष्म जीव बस इतना ही नहीं करते बल्कि यह भूमि से नाइट्रोजन को वायुमंडल में पहुंचाने की क्रिया में भी महत्वपूर्ण योगदान देते है। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में सूक्ष्मजीवों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जैव विविधता के स्तर प्रकृति में जीव-जंतु वनस्पति प्रजातियों की सही-सही संख्या का अनुमान लगाना कदापि संभव नहीं है।
pH ज्ञात करना
इस  अवसर पर सभी क्लब सदस्यों को जैव विविधता किट के प्रयोग भी करवाए गए, जिसमे क्लब सदस्यों ने निम्न प्रयोग करके देखे। 
मिट्टी में वायु की उपस्तिथि का प्रयोग
लिटमस पेपर से अम्ल क्षार में अंतर। 
दालों के नमूने एकत्र करना
तलाब के पानी की pH ज्ञात करना
गावों में पाले जाने वाले पशू-पक्षियों की सूचि बनाना
आस पास की वनस्पति की जानकारी एकत्र करना
पत्तों का जैविक विघटन समझना
इस अवसर पर 60 क्लब सदस्य व अध्यापक उपस्तिथ थे 
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा (विज्ञान अध्यापक)
    

गुरुवार, 3 मई 2012

शुक्र पारगमन की प्रशिक्षण कार्यशाला TOV Workshop


शुक्र पारगमन की प्रशिक्षण कार्यशाला TOV Workshop

सैद्धांतिक कक्षा 
शुक्र पारगमन का सुरक्षित एवं भव्य अवलोकन के लिए आज राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अलाहर में एक दिवसीय शुक्र पारगमन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्रधानाचार्य श्री नरेंद्र धींगडा ने बताया कि  इस कार्यशाला में दो विद्यालयों के  ४० छात्र-छात्रओं को पिनहोल कैमरा,बाक्स कैमरापानी में सूर्य का प्रतिबिम्ब बनानाटेलीस्कोप व बाइनाकुलर से प्रतिबिम्ब प्राप्त करना और सोलर फिल्टर से सूर्य को देखना आदि का प्रशिक्षण दिया गया। जैसा कि पता ही है कि 6 जून 2012 को शुक्र पारगमन होने जा रहा है।
बाक्स व पिनहोल कैमरा 
जून 2012 को शुक्र ग्रह का पारगमन होने जा रहा हैअर्थात् शुक्र ग्रह सूर्य के सामने से होकर गुजरेगा। यह बहुत दुर्लभ खगोलीय घटना होने के कारण खगोलविज्ञानियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। विज्ञान एवं तकनीकी विभाग ने इस  दुर्लभ खगोलीय घटना के सुरक्षित अवलोकन के लिए देश भर में व्यापक प्रशिक्षण की व्यवस्था की है। इसी के अंतर्गत मास्टर ट्रेनर्स द्वारा स्कूलों में शुक्र पारगमन के सुरक्षित अवलोकन का प्रशिक्षण  दिया जाना है।
टेलीस्कोप से प्रतिबिम्बन 
मास्टर दर्शन लाल ने इस बारे बच्चो को विस्तार से बताया और सूर्य का प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के बहुत से तरीके बताए।
क्या करें?
केवल सौर डिस्क का प्रक्षिप्त बिम्ब देंखे।
दूरबीन/बाइनाक्यूलर और पिनहॉल कैमरा से सूर्य के बिम्ब का प्रेक्षेपण पिन होलदूरबीन या बाइनाक्यूलर की एक जोड़ी द्वारा एक छायादार दीवार पर सूर्य के प्रतिबिम्ब को प्रेक्षिपित करें।
सुरक्षित सोलर फ़िल्टर 
केवल वैज्ञानिक रूप से जांचे गये सौर फिल्टर का इस्तेमाल करक ही सूर्य की ओर देखना चाहिए। ध्यान देने वाली बात है कि सिर्फ तीक्ष्ण दृष्टि वाले व्यक्ति ही सूर्य के डिस्क पर शुक्र को एक छोटे काले धब्बे के रूप में देख सकेंगे। पारगमन के दौरान काला धब्बा सौर डिस्क के उत्तरी भाग में पूर्व से पश्चिम की ओर पार करता दिखाई देगा।
क्या न करें?
बिना सुरक्षित सौर फिल्टर केखुली आंखों से पारगमन की किसी भी कला को देखने का प्रयास न करें।
दूरबीन या बाइनाक्यूलर से सीधे कभी न देखें।
धुएंदार कांचरंगीन फिल्मधूप के चश्मेअनवरित श्वेत-श्याम फिल्मफोटोग्राफिक ट्रल डेन्सिटी फिल्टर तथा पोलराइजिंग फिल्टरों का इस्तेमाल न करें। ये सभी सुरक्षित नहीं हैं।
फिल्टर के साथ भी सूर्य की ओर लगातार न देखेंकुछ सकेंड के अंतराल पर देखें।
इस अवसर पर कपिल,विशु,शिल्पा,दिव्या,शिवम,सोनम,प्रियंका,मनीष,जतिन,आकाश ने विशेष योगदान दिया 
अमर  उजाला मई ४ २०१२ माई सिटी यमुनानगर पेज-१
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

विश्व मलेरिया दिवस मनाया गया World Malaria day

विश्व मलेरिया दिवस मनाया गया World Malaria day
आज विश्व मलेरिया दिवस के अवसर पर इमली इको क्लब अलाहर एवं सी.वी. रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर के सदस्यों ने एक विचार गोष्ठी आयोजित की, इस गोष्ठी में मलेरिया रोग के इतिहास, फैलने के कारणों, जागरूकता का आभाव व रोकथाम के उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई। क्लब सदस्यों को मलेरिया से सम्बन्धित ताज़ा जानकारियों का पता चला और इस वे रोग के इतिहास को जान कर बहुत अचंभित हुए। विज्ञान अध्यापक व क्लब प्रभारी दर्शन लाल ने बताया कि अब दुनिया की मानव आबादी के लिए वह दिन दूर नहीं है जल्द ही मलेरिया को रोकने वाला टीका आने वाला है। ऐसा दर्शन लाल ने नेचर कम्यूनिकेशन पत्रिका में छपे ब्रिटिश वैज्ञानिकों के शोधपत्र के हवाले से कहा है। मलेरिया के रोकथाम के विश्वव्यापी प्रयासों के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग सात लाख मानव मलेरिया के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं इस रोग का इतिहास बताता है कि आबादी की आबादी खत्म की है इसने, इसका उपाय सर्वप्रथम डी.डी.टी.के रूप में समक्ष आया पूरी दुनिया में लाखो टन डी.डी.टी. का छिड़काव किया गया, कईं देशो में अलग से मलेरिया उन्मूलन विभाग बनाए गए लेकिन डी.डी.टी.के रूप में मिला उपाय भी मलेरिया के उन्मूलन में सफल ना हो सका वरन् डी.डी.टी. अन्य कईं पर्यावरणीय समस्याएं ले कर पेश आया मलेरिया पर दवा के विकास का इतिहास को देखा जाए तो विश्व में मलेरिया के विरूद्ध टीके विकसित किये जा रहे है यद्यपि अभी तक 100% सफलता नहीं मिली है। पहली बार प्रयास 1967 में चूहों पर किया गया था जिसे जीवित किंतु विकिरण से उपचारित बीजाणुओं का टीका दिया गया। इसकी सफलता दर 60% थी। उसके बाद से ही मानवों पर ऐसे प्रयोग करने के प्रयास चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह निर्धारण करने में सफलता प्राप्त की कि यदि किसी मनुष्य को 1000 विकिरण-उपचारित संक्रमित मच्छर काट लें तो वह सदैव के लिए मलेरिया के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर लेगा। इस धारणा पर वर्तमान में काम चल रहा है और अनेक प्रकार के टीके परीक्षण के भिन्न दौर में हैं। एक अन्य सोच इस दिशा में है कि शरीर का प्रतिरोधी तंत्र किसी प्रकार मलेरिया परजीवी के बीजाणु पर मौजूद सीएसपी (सर्कमस्पोरोज़ॉइट प्रोटीन) के विरूद्ध एंटीबॉडी बनाने लगे। इस सोच पर अब तक सबसे ज्यादा टीके बने तथा परीक्षित किये गये हैं। SPf66 पहला टीका था जिसका क्षेत्र परीक्षण हुआ, यह शुरू में सफल रहा किंतु बाद मे सफलता दर 30% से नीचे जाने से असफल मान लिया गया। आज RTS,S/AS02A टीका परीक्षणों में सबसे आगे के स्तर पर है। आशा की जाती है कि पी. फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण करने में आसानी होगी।
मलेरिया का टीका खोजना डॉक्टरों के लिए हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती रहा है दुनिया भर के वैज्ञानिक मलेरिया उन्मूलन का कोई कारगर उपाय खोजने में लगे रहे बहुत से रासायनिक और गैर-रासायनिक मलेरिया उन्मूलन के तरीको पर काम हुआ तब जाकर अब मलेरिया से निबटने का उपाय यानि हथियार वैज्ञानिकों के हाथ लगने वाला ही हैब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोकने का टीका लगभग विकसित कर ही लिया है इन ब्रिटिश वैज्ञानिकों को इस टीके के पूर्व परिणामों में पूर्ण सफलता मिली है यह टीका मलेरिया परजीवी की सभी प्रजातियों जैसे प्लाज्मोडियम वाईवेक्स, प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम, प्लाज्मोडियम मलेरियाई और प्लाज्मोडियम ओवेल पर कारगर होगा परन्तु अभी यह शोध प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम पर केंद्रित है। प्लाज्मोडियम फैल्सीपरम के जीनोम की पूरी कोडिंग मिल जाने से नयी दवाओं का तथा टीकों का विकास एवं परीक्षण करने में तेज़ी आयी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीटयूट के डॉ़ सिमोन ड्रापर की अगुवाई में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अब एक ऐसा टीका विकसित किया है जो शरीर में खासतौर पर प्लाज्मोडियम फाल्सिपरम को निष्क्रिय कर देता है।
मलेरिया परजीवी रक्त की लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करके तीव्र गुणित होता है और फिर बीमारी को जन्म देता है। शोध दल के वैज्ञानिकों ने जो तरीका अपनाया वो था कि सर्वप्रथम उस प्रोटीन को पहचनाना जो मलेरिया परजीवी को लाल रक्त कणिकाओं तक पहुचने को आसान बनाता है। प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर ‘बासिजिन’ नामक प्रोटीन को चुनता है और इस प्रोटीन के साथ ‘आर.एच.-5’ प्रोटीन को जोड़ देता है। इस क्रिया में लाल रक्त कणिकाओं में उसके लिए प्रवेशद्वार खुल जाता है जहां वह तीव्र गुणित होकर मलेरिया रोग को प्रकट करता है।
वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को रोकने के तरीकों पर काम किया और सफलता मिली, ‘आर.एच.-५’ प्रोटीन के विरुद्ध एंटीबॉडीज को प्रेरित कर के इस रोग को प्रकट होने से पहले ही रोकने में सफलता प्राप्त कर ली है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों का यह सफल शोध नेचर कम्यूनिकेशन पत्रिका में छपा है। मलेरिया का टीका 2015 तक बाजार में आ जायेगायह भरोसा अणु जीव वैज्ञानिक डॉ. जो कोहेन ने दिलाया है। 68 वर्षीय इस मृदुभाषी वैज्ञानिक के पास मलेरिया के टीके का पेटेंट है। इस पर उन्होंने इसी सप्ताह तीसरे चरण का परीक्षण पूरा कर दिया है। उनका दावा है कि इसके टीकाकरण से पांच से लेकर 17 महीने के शिशुओं में 56 फीसद तक मलेरिया की रोकथाम में सफलता मिली है। इस दवा को गंभीर बीमारी के दौरान तीन खुराक देने पर 47 प्रतिशत सफलता हासिल हुई है। इसका परीक्षण सब सहारा क्षेत्र के सात देशों में किया गया है। ये सारे परीक्षण टीके को बाजार में उतारने से पहले हो गये बताये जाते है। और इसके प्रभावों को कुछ माह के शिशुओं से लेकर बड़े बच्चों तक पर अच्छी तरह परखा जा चुका है। अगले दो से तीन साल में इंसानों पर भी इस टीके का इस्तेमाल शुरू करने की योजना है।
अखबारां में..........
 
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

गुरुवार, 22 मार्च 2012

विश्व जल दिवस मनाया गया World Water Day

विश्व जल दिवस मनाया गया World Water Day
आज इमली इको क्लब अलाहर के सदस्यों ने विश्व जल दिवस मनाया। 
इस अवसर पर क्लब सदस्यों ने गावं पालेवाला और कान्जनु में खुद के तैयार किये गए सोख्ता गड्ढों का पुनरावलोकन किया और यह भी गणना के कि जबसे यह दोनों सोख्ता गड्ढे उन्होंने तैयार किये हैं तबसे अब तक कितना व्यर्थ बह  जाने वाला पानी पुनः जमीन में वापस गया। 
Soakage Pit सोख्ता गड्ढा  
एक अनुमानित गणना से द्वारा पता लगाया गया कि दोनों सोख्ता गड्ढो ने गत छह माह में १२००० लीटर पानी को भूमिगत किया। 
एक सोख्ता गड्ढा प्रतिदिन ५०० लीटर व्यर्थ पानी को भूमि में पहुंचाता है और ५ वर्षों तक बिना किसी बड़े रखरखाव खर्च के पानी चूसने का काम करता है। 
आज क्लब सदस्यों को ५ लोगो ने अपने घर व घेर में सोख्ता गड्ढे बनाने का निमंत्रण दिया। 
ग्रीष्मावकाश में इको क्लब अलाहर के सदस्य इनके यहाँ सोख्ता गड्ढे बनायेंगें    
सोख्ता गड्ढे बनाने से यहाँ व्यर्थ पानी के कारण होने वाली कीचड़ की समस्या व सडक टूटने की समस्या से भी बचाव हुआ। 
क्लब बाल सचिव जोनी ने बताया कि उन्होंने आज अलग तरीके से विश्व जल दिवस मनाया आज उनके साथियों ने ग्रामीणों को पानी के निकास पर सोख्ता गड्ढा बनाने की प्रेरणा दी व इस के लाभों से अवगत करवाया। 
विश्व जल दिवस के बारे में बताते हुए क्लब प्रभारी दर्शन लाल ने बताया कि प्रत्यक वर्ष 22 मार्च का दिन जल को बचाने के संकल्प दिवस के रूप में मनाया जाता है, जल जीवन की एक बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता है, छोटे से लेकर बड़े बड़े कार्यों में जल नितांत आवश्यक है, हमारे इलाके में जल की कोई कमी नहीं है परन्तु यदि उचित जल प्रबन्धन ना किया गया तो वह समय दूर नहीं है जब हमे भी भयंकर जल संकट से रूबरू होना पडेगा  हमारे पास जल के उचित प्रबंधन का ज्ञान नहीं है जिस कारण हम जल को व्यर्थ करते है कुछ ऐसी जानकारियाँ दी गयी जिन कार्यों को हम अनजाने में कर रहे है और कीमती जल को बर्बाद कर रहे है|
अपने वाहनों बाईक,कार आदि को धोने में कितना ही शुद्ध जल बर्बाद कर रहें है,पानी संग्रहण टैंक के ओवरफ्लो से पानी की बर्बादी हो रही है,नलों व पाईप लाईनों की लीकेज से पानी की बर्बादी हो रही है |
स्कूल में बच्चों द्वारा ओक(चुल्लू) से पानी पीने से दोगुना जल लगता है और हाथ अच्छी तरह से धुले हुए ना होने के कारण बीमारियों का खतरा अलग से रहता है पानी गिलास से ही पीया जाए|
टूथ ब्रश ओए शेव करते वक्त नल खुला रखने से पानी की बर्बादी हो रही है,नहाने के लिए शावर और बाथ टब के प्रयोग से पानी की बर्बादी हो रही है,धान की साठी फसल लेने के लिए किसान बेइंतहा जल प्रयोग करते है यहाँ जल स्तर नीचे जाने का यह एक मुख्य कारण है |
अध्यापक सुनील कुमार ने बताया कि हमारी पृथ्वी पर एक अरब चालीस घन किलो लीटर पानी है. इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो कि खारा(नमकीन)  है, शेष 1.5  प्रतिशत पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवीय प्रदेशों में है। इसमें से बचा 1 % पानी नदी, सरोवर,तलाबो, कुओं, झरनों और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में प्रयुक्त होता है। शेष का 40वाँ हिस्सा हम नहाने, कपड़े धोने,पीने, भोजन बनाने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं।
अध्यापक मनोहर लाल जी ने एक रोचक जानकारी देते हुए बताया कि एक  लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है शहरी इलाको में दूध के तबेले यानी डेयरी वाले पशुओ के मल-मूत्र को भी पानी से ही बहाते है जिस कारण वहां एक लीटर दूध के पीछे खर्च जल का अनुपात और भी  बढ़ जाता है, एक किलो गेहूँ उगाने के लिए 1 हजार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए 4 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। जल के उचित प्रबंधन के अंतर्गत पीने के लिए मानव को प्रतिदिन 3 लीटर और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए।
अध्यापिका गगनज्योति ने बताया कि  इज़राइल देश में औसत प्रतिवर्ष 10 सेंमी वर्षा होती है, इतनी ही वर्षा के जल के प्रबंधन से वहां के किसान  इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात भी कर लेता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है। भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन 4 मील पैदल चलती है।
अमर उजाला में छोटी से खबर छपी.......

प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

बुधवार, 7 मार्च 2012

इमली इको क्लब के सदस्यों ने खेली इको-होली Eco-Holi

इमली इको क्लब के सदस्यों ने खेली इको-होली Eco-Holi 
हमारा हरियाणा हमारी होली........
प्राकृतिक रंग तैयार किये
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अलाहर के इमली इको क्लब के सदस्य इस बार होली प्राकृतिक रंगों से इको-होली खेली इसके लिए उन्होंने आज प्राकृतिक पदार्थो से रंग तैयार किये।
अपने बनाए रंगों के साथ बच्चे व अध्यापक 
क्लब इंचार्ज विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल के मार्गदर्शन में टेसू के फूल, हल्दी, मेहंदी, गेरू, नील, गुड़हल के फूल, मैदा, चुकंदर, रक्त चन्दन आदि पदार्थो का प्रयोग करके सात अलग अलग प्राकृतिक रंग तैयार किये।
टेसू या पलाश के फूल 
रासायनिक लवणों वाले सिंथेटिक रंग  
रंग बनाने से पहले क्लब सदस्यों को होली खेलने के महत्व बारे बताया गया प्रेम और सौहार्द के रंग जीवन में भरने के लिए रंगों से होली खेली जाती है परन्तु आजकल होली के रंगों में भी बदलाव आ गया है और होली के इन  रंगों में अब रसायनिक पदार्थ भी होते हैं कुछ रंग तो तेज़ रासायनिक लवणों से तैयार किए जाते हैं। ये रासायनिक रंग हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, विशेषतौर पर आँखों और त्वचा के लिए। 
जम कर खेली इको-होली 
संजय शर्मा ने बच्चों को बताया कि जब सिंथेटिक रंग से आपकी त्वचा या शरीर को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचता है तो होली की मौज-मस्ती का सारा रंग फीका पड़ जाता है इन्हीं सब समस्याओं ने फिर से हमें प्राकृतिक रंगों की ओर रुख करने को मजबूर कर दिया है।
क्लब सदस्यों ने खुद खूबसूरत लाल-हरा, नीला-पीला, केसरिया-गुलाबी रंग तैयार किया अब वो  इन रंगों से इको-होली खेल कर और बधाइयां दे कर पर्यावरण के प्रति अपनी जागरूकता का परिचय देंगे।
हल्दी चूने से रक्त लाल रंग 
हल्दी को पानी में घोल कर उस में दो तीन चुटकी चुना डाल कर रक्त जैसा रंग,टेसू के फूल पानी में भिगो कर केसरिया रंग बनाया , मेहंदी से मेहंदी पेस्ट, गेरू से लाल, इंडिगो यानी नील से नीला रंग, चुकन्दर को उबाल कर चटक लाल गुलाबी,  मैदा में हल्दी व मेहंदी डाल कर गुलाल,रक्त चंदन चूर्ण से खुशबूदार गुलाल, गुड़हल के फूल पीस कर रंगीन पेस्ट बनाई।
बच्चों के साथ अध्यापकों ने भी खेली इको-होली 
इन रंगों से आज मोहितरजतराजेशजोनीशनिअजयरविऋषिराहुलकपिलअरुणविशुहिमांशु,  लवलीशिवम और अध्यापक मुकेश रोहिलसंजय शर्मासंदीप,राम नाथ बंसलदर्शन लालसुनीलमनोहर लाल, नित्यानंद, सुभाष चन्द्र,  ने इको-होली खेली। 

उत्साही पर्यावरण प्रेमी क्लब सदस्य 

                        अमर उजाला अखबार में प्रकाशित इको-होली की खबर 
अमर उजाला चंडीगढ़ अम्बाला माई सिटी पेज-4 यमुनानगर  
प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया National Science Day


राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया National Science Day 

अलाहर में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया 
 स्पेक्ट्रोस्कोपी से ‘रमन प्रभाव’ की खोज  
विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर साल २८ फरवरी को देश भर में  राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है इसलिए आज  २८ फरवरी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विधालय अलाहर में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया, इस  अवसर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया और एक विज्ञान परियोजना प्रदर्शनी लगाई गयी।
छात्रों ने इस बार की राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की मुख्य थीम ‘स्वच्छ ऊर्जा के विकल्प और परमाणु सुरक्षा’ पर केंद्रित परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की । इस अवसर पर छात्रों ने विभिन्न विज्ञान विषयों पर अपनी अपनी परियोजना प्रदर्शनी भी लगाई ।
छात्रों ने ऊर्जा के परम्परागत और गैरपरम्परागत साधनों पर चर्चा की और सोलर उर्जा, पवन उर्जा, ज्वारीय उर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों पर विचार प्रस्तुत किये। 
विज्ञान अध्यापक श्री दर्शन लाल ने बताया कि हर साल भारत में २८ फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है इस दिन प्रख्यात भौतिकिशाष्त्री सर सी.वी.रमन ने १९२८ में स्पेक्ट्रोस्कोपी से ‘रमन प्रभाव’ की खोज की। 
मशहूर भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा खोजे गए रमन प्रभाव की मदद से कणों की आणविक और परमाणविक संरचना का पता लगाया जा सकता है और इसीलिए भौतिक और रासायनिक दोनों ही क्षेत्रों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है
दररअसल रमन प्रभाव की खोज ने आइन्सटाइन के उस सिद्धांत को भी प्रमाणित कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रकाश में तरंग के साथ ही अणुओं के गुण भी कुछ हद तक पाए जाते  है। 
इससे पहले न्यूटन ने बताया था कि प्रकाश सिर्फ एक तरंग है और उसमें अणुओं के गुण नहीं पाए जाते. आइन्सटाइन ने इससे विपरीत सिद्धांत दिया और रमन प्रभाव से वह साबित हुआ ।  

 परियोजना रिपोर्ट करती छात्राएं 
इस खोज के दो साल के बाद सर सी.वी रमन को १९३० में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 
इसलिए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, भारतीय विज्ञान और वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महान दिन है।
विज्ञान दिवस के अवसर पर स्कूल के बच्चो को विभिन्न विज्ञान प्रयोग करके दिखाए और बच्चो ने भी अपने द्वारा तैयार ‘बेस्ट आउट आफ वेस्ट’ प्रयोग दिखा कर विज्ञान दिवस मनाने में अपना योगदान दिया।    
श्री संजय शर्मा प्रवक्ता ने नाभकीय सयंत्रों की सुरक्षा और उनसे सुरक्षित उर्जा प्राप्ती पर अपने विचार रखे ।
इस अवसर पर दिव्या,सोनम,शिल्पा,प्रियंका,मोहित,अजय,जोनी,रजत,नेहा,दीक्षा ने भी विज्ञान के विभिन्न उपविषयों पर अपने परियोजना पेपर पढ़े ।
मुकेश रोहिल,मनोहरलाल,दर्शन लाल, राम नाथ बंसल,संदीप अध्यापकों का योगदान सराहनीय रहा ।

प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक) 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

विश्व नमभूमि दिवस पर नमभूमि का भ्रमण World Wetland Day

विश्व नमभूमि दिवस पर नमभूमि का भ्रमण 
World Wetland Day
 02 फरवरी 2012
 नमभूमि के शैक्षणिक भ्रमण की टीम के क्लब सदस्य  
आज विश्व नमभूमि दिवस पर क्लब सदस्यों ने नजदीकी  नमभूमि  का भ्रमण करके नम भूमि के बारे में जाना और नम भूमि की वनस्पति और  नमभूमि-जीवन के बारे में भी जाना । 
क्लब सदस्य नजदीक के क्षेत्र मे गए जहां नमभूमि थी वहाँ पर सदस्यों ने नमभूमि सम्बन्धित बहुत सी गतिविधियां की । 
नम भूमि के जीवन का अध्ययन
समूहों मे बंट कर सदस्यों ने सबसे पहले नम भूमि के जल की पी.एच.ज्ञात की फिर सदस्यों ने सब ने नम भूमि की और आसपास की वनस्पति का अध्ययन किया ।  
नम भूमि के जीवन का अध्ययन किया और पाया कि यह कम गहरे पानी वाला स्थान बहुत से जीवों का आश्रय होता है छोटे छोटे जलस्थल चर जीव जलीय वनस्पति और अपना जीवन यापन करते है । 
सदस्यों ने नम भूमि की खाद्य श्रृंखला को भी जाना त्री स्तरीय और चार स्तरों वाली  खाद्य श्रृंखला को नोट किया । 
दुसरी गतिविधि मे सदस्यों ने नम भूमि के पक्षियों को देखा और उन की गतिविधियों को नोट किया और पाया कि ये पक्षी नम भूमि के कीटों को अपना भोजन बना रहे थे । 
ये पक्षी स्थानीय नहीं होते हैं इए सब प्रवासी पक्षी हैं जो मीलों उड़ कर अधिक सर्द स्थानों से यहाँ आते हैं और जीवन की आवश्यक क्रियाएँ सम्पन्न कर के मौसम बदलने पर वापस अपने मूल स्थान पर चले जाते है । 
मोर के पदचिन्ह 
तीसरी गतिविधि मे विभिन्न पक्षियों के पदचिन्ह खोजने की प्रतियोगिता की गयी क्यूंकि नम भूमि मे पदचिन्ह बड़ी ही स्पष्टता से छपते हैं सदस्यों ने समूह बना कर मोर,बगुला,जलमुर्गी,नीलगाय,कुत्ता और गीदड़ आदि जीवों के पदचिन्ह देखे और उनके रेखाचित्र बनाए ।  
क्लब सदस्यों ने एक पक्षी के पदचिन्हों का पीछा करते हुए यह जाना कि वह पक्षी इस नमभूमि के एक गड्डे मे एकत्र  पानी को पीने रात्री को आया था । 
अंतिम गतिविधि मे क्लब सदस्यों को नमभूमि के आसपास की वनस्पति और खेती और पौधों की किस्मों से अवगत करवाया गया ।  
सभी छात्रों का यह अनुभव बहुत ही ज्ञानवर्धक रहा ।  
क्लब प्रभारी विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल ने बताया कि उनके द्वारा क्लब सदस्यों को समय समय पर इस प्रकार के सूक्ष्म शैक्षणिक भ्रमण करवाए जाते हैं ताकि छात्रों की पर्यावरण संरक्षण मे रूचि उत्पन्न हो और वो पर्यावरण संरक्षण मे अपना योगदान दे सकें । 
इस नमभूमि भ्रमण मे कपिल,विशु,मोहित,जोनी,राजेश,अमन,सलमान,अरुण,शुभम,रजत,रोहित,शनि,लवली विशेष ग्रेड अर्जित किये   
संजय शर्मा,मुकेश रोहिल,दर्शन लाल,सुनील कुमार,संजीव कुमार,संदीप कुमार का भी सहयोग इस भ्रमण समूह  को सम्बोधित किया ।
अमर उजाला अखबार मे छपी खबर  

प्रस्तुति: ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा: दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)        

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

पृथ्वी की परिधि के परिणाम आये Earth Experiment Results

पृथ्वी की परिधि के परिणाम  Earth Experiment Results 

सी.वी.रमन विज्ञानं क्लब एवं इमली इको क्लब के सहयोग से जिले के चार शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने गत २२ दिसम्बर को पृथ्वी की परिधि नापने के प्रयोग किये थे. 
इन प्रयोगों से प्राप्त आंकड़ों को फ्रांस की संस्था के पास भेजा गया था .
इस संस्था के पदाधिकारियों ने दुनिया भर के स्कूलों से प्राप्त आंकडो के दो दो के युग्म बना कर २२०० वर्ष पुरानी रोमन पद्धति से पृथ्वी की परिधि ज्ञात की और मानकों से तुलनात्मक अध्ययन करके प्रत्येक युग्म स्कूल की आंकड़ों की प्रमाणिकता की जांच की.
यमुनानगर जिले के अलाहर गावं के सरकारी स्कूल के ग्रुप नम्बर एक का युग्म फ्रांस के लाफ्रंचैसे के कूलिज स्कूल के विद्यार्थियों के साथ बनाया गया.
ग्रुप नम्बर एक के लीडर जोनी और मार्गदर्शक विज्ञानं अध्यापक  दर्शन लाल ने बताया कि उनका सूर्य उन्ताश कोण ५३.३ डिग्री और पेयर स्कूल का उन्ताश ६७.४ डिग्री आया .
दोंनो स्थानों की अक्षांशीय दूरी १५६७ किलोमीटर आंकी गयी. 
इन जानकारियों का प्रयोग सूत्रों में करके पृथ्वी की परिधि ४०००९ किलोमीटर आयी जबकि पृथ्वी की स्टैंडर्ड परिधि ४००७५ किलोमीटर है अर्थार्त कुल ६६ किलोमीटर का अंतर आया. 
इसका त्रुटि प्रतिशत ०.१६ % रहा जो कि इतनी बड़ी गणना के लिए लगभग नगण्य माना गया. 
इस शुद्ध गणना के लिए इस ग्रुप के सभी सदस्यों को ए प्लस प्रमाण पात्र दिया गया. 
बाकी सभी ग्रुप्स की गणना भी १% से कम त्रुटिपूर्ण रही उन को ए ग्रेड प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ.
इस प्रयोग के लिए किसी भी प्रकार का कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिला था क्लब और स्कूल के ससाधनो का प्रयोग करके यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रयोग करके ६० छात्र ८ अध्यापक ४ शिक्षण संस्थान लाभान्वित हुए. 

क्लब संयोजक दर्शन लाल ने बताया कि क्लब द्वारा इस प्रकार के कईं प्रयोग समय समय पर किये जाते है.
 जिस से विद्यार्थियों खास कर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रूचि जागृत करने के भरपूर प्रयास किये जाते हैं.
 दर्शन लाल ने अपने प्रयासों से १८ वर्ष के सेवाकाल में ग्रामीण क्षेत्र के बहुत से विद्यार्थियों को बेहतर करियर के लिए विज्ञान शिक्षा प्राप्त के लिए प्रेरित किया जिस कारण कितने ही उनके बहुत से विद्यार्थी आज बी.टेक.,बी.एस.सी.,एम.एस.सी.,एम.टेक.,कर के प्रतिष्ठित संस्थानों में सेवारत है और इन सभी ने कभी न कभी विज्ञान प्रतियोगिता में जरूर भाग लिया था.  
प्रस्तुति:- ईमली इको क्लब रा.व.मा.वि.अलाहर जिला,यमुना नगर हरियाणा  
द्वारा:-दर्शन लाल बवेजा(विज्ञान अध्यापक)  
अमर उजाला अखबार में आज